पड़ेगा, (हिं.) क्योंकि (श्रतैः) इन्द्रियों के (विना अध्यक्षम् )
विना प्रत्यक्ष (न) सिद्ध नहीं हो सकता और इन्द्रियों का इन्द्रियों
से प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता. किंतु अनुमान प्रमाण द्वारा तथा
शास्र प्रमाण द्वारा ही इन्द्रियों का ज्ञान होता है। इसलिये हे
चार्वाक ( अध्यक्ष मात्रे) केवल प्रत्यक्ष प्रमाण में ही (मानता)
प्रामाण्य मानना ( तव ) तुझको (न सुगमा ) सुलभ नहीं है।
केवल प्रत्यक्ष प्रमाण कहने मानने वाले (भवान् ) तुम (अन्यस्य)
अपने से भिन्न दूसरे पुरुष के (ज्ञानम्) ज्ञान इच्छा आदिकों के
(बोद्धम्) जानने को (न प्रभवति) समर्थ नहीं होंगे, क्योंकि
दूसरे पुरुष के ज्ञान, इच्छा सुखादिकों का चष्टा मुख प्रसन्नता
आदिक लिंगों से ही अनुमान किया जाता है । (तेन ) इन सब
कारणों से (भवान् मिथ्या प्रलापी) तुम मिथ्या बकवाद करने
वाले हो ऐसा प्रतीत होता है।॥३८॥
गौरः स्थूलो युवाहं पटुरिति च तनावात्म
बुद्धिर्जनानां स्वाभाव्यादेव सिद्धेत्यधिगमयदिदं
दर्शनं ते । वेदद्वेषात्प्रवृत्तं यदि बत
न तरां द्वेष भूलं प्रमाणं देवान्नष्टस्त्वमेकः
किमिति शठ परान् हंत हंतु प्रवृत्तः ॥३१॥
मंनुष्यों को मैं गोरा हूं, मोटा हूं, युवान हूँ, चतुर हूं,
इस प्रकार शरीर में अंात्मबुद्धि स्वभाव से ही सिद्ध है
इससे तेरे दर्शन का उपदेश निष्फल है। यदि वेद के द्वेष
करने में , प्रवृत्त हुआ है तो खद है ! द्वेष हेतु होने से तेरा
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स्वाराज्य सिद्धिः
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