पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/६०

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स्वाराज्य सिद्धिः

प्रकार के क्यों नहीं होंगे? जगत् और शास्र व्थवस्था रहित होगा । तुझे अपना शास्त्रीय निश्चय भी संदेह रूप हीं होगा । विरोध से बंध मोक्ष व्यवस्था भी नहीं होगी । इसलिये, हे नग्र, यह तेरा सर्वानेकान्त वाद उन्मत्तकै प्रलाप के ' समान है ।॥२७॥
प्रथम इन जैनों की प्रक्रिया जानी चाहिये, इसलिये पहिले संक्षेपसे उनकी प्रक्रिया लिखता हूं। जीव, अजीव, आस्रव, संवर, निर्जर,बंध और मोक्ष यह सप्त पदार्थ जैनों के मत में हैं। 'तहां बोधात्मक भोक्ता जीव कहा जाता है और जड़ रूप भोग्य अजीव कहा जाता है । विषयों के श्रभिमुख रूप इन्द्रियों की प्रवृत्ति आस्रव' कहा जाता है। इनके कोई श्राचार्य कस का वाम ही:श्रास्रव बतलाते हैं। यह अखिाव मिथ्या प्रवृत्ति रूप है, क्योंकि उक्त अर्थक आस्रव पुरुष को अनर्थ:का कारण है। इस मिथ्या प्रवृत्ति के संवरण करने वाला होने से तथा पाप के नाश करने वाला होने से संवर और निर्जर यह दोनों सम्यक् प्रवृत्ति रूप हैं, इसलिये शराम, दम, यूम नियमादिकों का नाम ही'संवर है। तप्त शिला रोहणादिक तप का नाम निर्जर है। कम का नाम ही बंध है और कर्मपाश के नाश होजाने पर लोकाकाश में प्रविष्ट हुए जीवं का निरंतर ऊपरी गमन ही इनके मत में मोक्ष पदार्थ है ।
शंका-श्रास्रव आदिक तो जड़ स्वरूपं भोग्य अजींव पदार्थ के ही अन्तर्गत हैं ऐसा प्रतीत होता है फिर पदार्थो के सात प्रकार कैसे कहते हैं ?
संमाधनि--संक्षेपं से तो इनके मत में जीव और अजीव यहं दो ही पदार्थ हैं। फिर इनका ही ऋआगे विस्तार करते हैं किं