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पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/४७

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प्रकरणं १ श्लो०२१

किस प्रकार होता है? परिणाम से द्वयणुक व्यणुक के समान

महान् परिणाम वाला क्यों नहीं होता ? द्वयणुक से

उन्पन्न हुआ व्यणुक पदार्थ ही नित्य क्यों न होगा ? इस

लिये परमाणु भी नित्य और निरवयव कैसे हो सकता

है ? नहीं हो सकता ॥२१॥

( असत्कार्य वादिन्) अर्थात् मृदादि कारण में सर्वथा असत् अविद्यमान ही घटादिक कार्य पश्चात् उत्पन्न होता है इस प्रकार कहने वाले, हे असत्कार्यवादी, हम् पूछते हैं कि द्वयगुणक की उत्पत्ति में अणुश्रों के संयोग के लिये सृष्टि के श्रादि में (अण्वोः) दो परमाणुओं में क्रिया (कस्मात्) किस कारण से ( स्यात् ) होती है । ईश्वर की इच्छा से उन दो परमाणुओं में क्रिया होती है इस पक्ष का पूर्व पद्य में खंडन कर आये हैं । (अथ) प्रकारांतर से भी परमाणुश्रों के सृष्टी आदि काल में संयोग्य का खंडन किया जाता है । (निष्प्रतीको) चे दोनों निरवयव परमाणु (कथं मिलितौ ) किस प्रकार संयोग वाले हो सकते हैं ? अर्थात् निरवयव होने से तथा जड़ होने से किसी प्रकार भी परमाणुओं का संयोग नहीं होगा, क्योंकि संयोग एक देश वृत्ति होता है यह नियम देखा जाता है । जो निरवयव पदार्थो का संयोग मानने में बाधित होता है (कार्यम्) वह द्वयणुकरूप कार्य (ताभ्याम्) उन दो परमाणुओं से (तृतीयम्) सवथा भिन्न (कथम्) किस प्रकार ( स्यात्) हो सकता हे ? नहीं हो सकता, क्योंकि कारण के अवयवों से भिन्न अवयव कार्य में उपलब्ध नहीं होते, और कारण के गुण ही सजातीय अन्य गुणों की उत्पत्ति में कारण होते हैं । ऐसा द्वयणुक श्रादि कार्य में देखने से, (पारिमांडल्यतः) परिमंडल का अर्थ है।