३४ ]
जड़ होने से प्रधान और परमाणुओं की प्रवर्तकता अथत प्रेरकता रूप जगत् का केवल निमित्न कारण ईश्वर है यह योगियों, काणादों, गौतमों और माहेश्वरों का मत है। इसका आगे के दो श्लोकों से खंडन करते हैं नेशेोऽधिष्ठातुमीशो तनुकरणगुणस्तार्किकाणां प्रधानं स्याचेत् तन्वचत्वत्वां सुचरित दुरितोद्भत्त भोग प्रसंग: ! दुःखाढ्यकुर्वतोऽस्य प्रसरति विधमाचार नेष्ठण्यदोषः कर्मेप्सोश्चक्रकाव स्थिति इति विफलत्वान्यथा सिद्धयः स्युः ।। १९ ।। तार्किकों का ईश्वर शरीर इन्द्रिय प्रयत्न इच्छादि गुणों से रहित है । इसलिये वह परमाणुओं को प्रवृत्त करने में समर्थ नहीं होगा । यदि उसे शरीर, इन्द्रिय वाला माना जाय, तो उसे पाप पुण्य का भोग होगा । दुःखागार जगत् को रचते हुए वह विषमता और निर्दयता के दोष को ग्राप्त होगा । जीवों के कमों की श्रेक्षा रखने से चक्रिका, अनवस्था श्रादि दोष और ईश्वर के स्वीकार की, निष्फ लता हेगी और ऐसे ईश्वर विना ही जगत् की सिद्भि होगी ॥१६॥ (तार्किकाणाम्) केवल तर्क ही से कारण का निरूपण करने वाले तार्किकों के मत में (अतनुकरणगुणः ईशः) शरीर