प्रकरण ३ श्लो० ४२ [ २६३ अधिकारियों को शुभ वाक्यों से उपदेश करके परमपद का श्रानंददाता जीवन्मुक्त महात्मा सूर्य के सदृश : दिशाओं का पवित्र करता हें ॥४१॥ (प्रबुद्धः) ज्ञातज्ञेय जीवन्मुक्त महात्मा (भुवनजाड्यहरैः) लोकों के अज्ञान को हरने वाल तथा ( सत्वाज्ज्वलः ) सत्य रूप ब्रह्म के प्रबोधक अति शुद्ध वा दीप्तिमान् तथा (श्रुतिसुखैः । श्रवण मात्र से अधिकारी जनोंको सुख देनेवाले तथा(अमृतबोधै:) अमृत रूप अर्थात् जन्म मरण आदि रूप संसार धम से रहित ब्रह्म और आत्माका अभेद् रूपसे ज्ञान करने वाले तथां (भानु रिव) सूर्य के समान अधिकारियों के अज्ञान रूप अन्धकार को ( इत्यादिभि) चिरान्मग्नेनांतः प्रकृतिविषमे' इत्यादि उक्त (सुगोभिः) शुभ वाक्यों से (प्रबुद्धः) ज्ञातज्ञेय जीवन्मुक्त महात्मा (प्रणतान् सभाग्यान् ) साष्टांग दण्डवत् प्रणाम करने वाले सुकृति जिज्ञासु जनों को (प्रतिपदं श्रानंद्यन्) पद् पद में श्रानंद देता हुआ (आशा: ) दुसों दिशाओं को (पवित्रयति ) पवित्र करता है।॥४१॥ श्रब ग्रंथकर्ता श्राचार्य श्रीगंगाधरेंद्र सरस्वती ब्रह्मवेत्ता जीवन्मुक्त महात्मा की श्रुति स्मृति अभियुक्त कृत स्तुति का अनुवाद करते हैं निगड श्रतिसारसौख्ये विन्यस्य चित्तमभया त्मनि निवृतो यः !४२॥
पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२७१
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