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पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२५२

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२४४ ] स्वाराज्य सिद्धि प्रकार कृपा के सहित होकर तथा (सानन्दम्) वह कृतार्थ हुआ होने से श्रानन्द के सहित होकर गाता है अर्थात् कहता है। किस लिये ? (उत्कंठया) स्वलाभानन्द के प्रकट करने की उत्कृष्ट इच्छा से यह विद्वान् वक्ष्यमाण रीति से गाता है।॥२५॥ अब विद्वान् का गान श्रारंभ करते हैं। प्रथम लोक संग्रह अर्थ विद्वान् गुरुका गीत गाते हैं शिखरिणी छन्द । चिरान्मग्नेनान्तः प्रकृितिविषमे जन्मजलधो मया पुण्येलब्धो गुरुरमृतचिन्तामणिरहो । यदीया भिर्गेभिविशदमधुराभिर्वितिमिरेस्वसंपूर्णे यस्मा न्निरवधिसुखे धामनि रमे ॥२६॥ स्वाभाविक संकटरूप जन्म समुद्र के बीच में बहुत काल से मैं डूबा हुआ था । अब मैंने अमृत चिंतामणि स्वरूप गुरु को महा पुण्य से प्राप्त किया है और गुरु स्वप मणि की स्पष्ट प्रिय वाणी स्वरूप प्रभा से अंधकार रहित स्वपूर्ण अवधि रहित सुख स्थान में रमण करता हूं ॥२६॥ (प्रकृतिविषमे जन्मजलधौ अन्तः) स्वभाव से संकटरूप जन्म समुद्र के बीच में (चिरात्निमग्नेन मया) बहुत काल से निमग्न रह कर अंत में मैंने (अमृत चिंतामणिः गुरुः अहो पुण्यैः लब्धः) अमृत रूप तथा चिंतामणि रूप गुरु किसी पुण्य प्रभाव से प्राप्त किया है। अपने ब्रह्म तत्व के उपदेश से शिष्य को भी अपने समान गुरु जन्म मरण से रहित कर देता है. इस