अर्थात् लाड़ से (वा हठात्) अथवा हठ यानीबलसे (रुद्धवा) सर्वदा काल स्व स्व विषय में गमन करने से रोक करके अर्थात् इन्द्रियों को तथा मन को स्व स्व विरुद्ध विषयों के भोग से तथा संकल्प से निवृत्त करके (विविक्त अनंतं परम सुख चिदात्मानं एकं ध्यायेत्) एकांत विजनदेश में देशकाल वस्तु परिच्छेद से रहित अनंत, सजातीय विजातीय स्वगत भेद से रहित रूप, एक परमानन्द स्वरूप तथा चेतन श्रात्मा का ध्यान करे अर्थात् विजातीय प्रत्ययों के त्याग पूर्वक सजांतीय प्रत्ययों का प्रवाह करे ॥१०॥
योग शास्त्रानुसार ध्यान का ही अब निरूपण करते हैं
मुक्त्वा संगं सहिष्णुः शुचिहितमित भुक् योग
शास्त्रार्थ दशीं पुण्ये निर्दोषदेशे यम नियम
दृढ़ः स्वासनस्थः प्रसन्नः । प्राणायाम क्रमेणा
हृतचपलमनः स्थूलसूक्ष्मे निरुध्य ध्यायन्ने
कात्म्यसौख्यस्थिरगलितमना मोहबंध छि
संगरहित, सहनशील, पवित्र, हितकरव परिमित भोजन करनेवाला,योगशास्रके अनुसार यमनियमयुक्त, प्रसन्न और प्राणायाम द्वारा मनकी चंचलता को क्रम से हरण करते हुए शुद्ध श्रार पावत्र दश म श्रासन लगाकर स्थूल सूक्ष्म : म मन'को रोककर आत्मसुख में मन को गलित करने वाला