पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२२४

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२५५ स्वाराज्य सिद्धि होती । (प्रदीप तरणि प्रकाशयोः विषये ) दीपक और सूर्य के प्रकाश के विषय घटादिक पदार्थ में (प्रतिभासतः) प्रकाश के भेद से (पृथग् विधा खलु नास्ति) किसी : प्रकार का भेद नहीं है। भाव यह है कि दीपक के प्रकाश में तो घट घट रूप से प्रतीत हो और सूर्य के प्रकाश में वही घट पट रूप से प्रतीत हो ऐसा भेद नहीं देखते में श्राता श्रौर दीप के प्रकाश में रक्त श्रौगः सूर्य प्रकाश में वही रक्त नील प्रतीत नहीं होता । इसलिये यह सिद्ध हुआ कि जैसे स्वभाव वाली वस्तु होतं! है, वैसे ही प्रमाण उस वस्तु को प्रकाश करते हैं।२।। अथवा कहीं पर विचित्र स्वभाव वाले.विषय के भेद् से श्रवा सामग्री के भेद से वस्तु भान का भेद रहे, परन्तु अपरोक्ष स्वभाव आत्मा में यदि प्रमाणमूर्धन्य तत्त्वमसि महा बाक्य भी परोक्ष ज्ञान को ही उत्पन्न करेगा तो प्रामाण्यता से च्युत हो जावेगा । इस अर्थ को दिखलाते हैं अपगेचवस्तु विषयापरोक्त मुपगन्तुमहति । स्वत एव शश्वढवभातमात्मनः कुशलाऽपि न स्वमपि गूहितु क्षमः ।।३।। श्रपरोक्ष वस्तु का विषय करने वाली परोक्ष बुद्धि, प्रमाण भाव को प्राप्त होने के योग्य नहीं है । चतुर पुरुष भी स्वाभाविक सदा अपरोक्ष स्वप स भासने वाले श्रपने आत्मा को परोचं करने में समर्थ नहीं है ॥३।। ( अपरोक्ष वस्तु विषया परोक्षधीधी:) अपरोक्ष वस्तु को