पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२११

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प्रकरणं 2श्लो० 56

समाधान-ज्ञानी मूढ़ पुरुष की तरह फिर जन्म बंधन में ऋविद्या ऋग्रादि : ज्ञान से दग्ध हो गया है। यही श्रर्थ दिखलाया जाता है
संप्रद्य यत्र करणादिलयक्रमेण मूढो मृतः पुन
रुषेति जनि प्रबन्धम् । प्राज्ञस्तु वंचयति मृत्यु
मुदस्तमाद्भः सड ब्रह्म तत्त्वमास्त नस्तर मृत्यु
श्रज्ञानी मनुष्य, इंद्रिय श्रादिक का क्रम से लय होकर मृत्यु होने के बाद फिर जन्म बन्धन को प्राप्त होता है । मोहरहित ज्ञानी पुरुष मृत्यु को ठगता है। वह सत् ब्रह्म ही है इंस प्रकार जान मृत्यु के बंधन से तैर जा ॥५६॥

: (मूढः करणादिलय क्रमेण यत्र संपद्य मृतः पुनः जनि प्रबंधं

एति) अनात्मज्ञ पुरुष इन्द्रियादिकों के लय क्रम से अर्थात् मरण काल में वाक् आदिक इन्द्रिय मन में लय होजाते हैं, मनं श्रध्यात्मिक प्राण में लय होजाता है, प्राण भौतिक तेज में लय हो जाता है और तेज सत् रूप ब्रह्म देवता में लय होजाता ३ । इस प्रकार बान्न श्रादिक इन्द्रियों के लय कम से जिस पर त्मा रूप सद् ब्रह्म में प्राप्त हो कूरके मरण से अनन्तर मी काम, कर्म, श्रविद्या के सदुभात्र होने से जन्मों की परंपरा रूप जन्म बंधन को प्राप्त होता है ।'(उदस्त मोहः प्राज्ञस्तु मृत्यु वंच यति ) परन्लु.अज्ञान से रहितः आत्मज्ञ पुरुषः मूढ़ के सध्शं ही