पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२०६

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स्वाराज्य सिद्धिः

उस बीज में ही बहुत उंचा स्थूल वट का वृक्ष है।

उत्पत्ति के पूर्व जो स्थित था वही अब उत्पन्न हुआ है

श्रद्धा वाले अधिकारी से सूक्ष्म् से सूक्ष्म सतू जानने के

योग्य है । वह ब्रह्म तू है, अन्य सब असत् है ॥५३॥

धेतकेतु से पिता ने कहा कि, हे प्रियदर्शन, तू इस वटसे एक वट के फल को ला तबै पुत्र ने आज्ञा पाकर फल को लाकर कहा कि मैं फल ले आया हूं। तब पिता ने कहा इसे भेदन कर पुत्रने उसका भेदन कर दिया तब पिता ने कहा कि हे सोम्य , इस भेदन किये हुए फलमें तुम क्या देखते हो तब घुत्रने कहा कि इसमें अत्यंत सूक्ष्म वट के बीजों को देखता हूं । तब पिताग्ने यहा कि इन सूक्ष्मतर बीजों में से भी एक बीज का भेदन कर । पुत्र ने वैसे ही किया तब पिता ने पूछा तू इसमें क्या देखता है ? पुत्रने कहा कुछ नहीं देखता पिता ने कहा कि हे प्रियदर्शन ( धानान्त: ) इस वट के बीजमें ही (उझल उरु वट: ) श्रति ऊचा और स्थूलतम वट का वृक्ष है। अर्थात् जैसे अत्यन्ल शूक्ष्म वट के बीज में पूर्व स्थिल हुआ ही वट पश्चात् आविभूत होता है, तैसे . ही ( यस्मिन् पूरा अवस्थितं इदं जगत् श्राबि आसीत्) उत्पत्ति से पहले स्थित हुआ ही यह जमत् पश्चात् प्रकट हो गया है । (श्रद्धावता). अत: श्रद्धा वाले श्रधिकारी ही अर्थात् विश्वासवान् जिज्ञासु ही (अणोः अणीय:) सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतमं सत् रूप ब्रह्म ( अधिगम्यम्) जान सकता है । (सत् ब्रह्म तत्त्वमसि ) वहसूक्ष्मसे भी सूक्ष्सतमसूत् रूप ब्रह्म तूहै और (सत्यं सत्यं अन्यस्) इस कारण कारण रूप तू ब्रह्म ही सत्य हैं और तुम्हारे से भिन्न यह सर्व कांग्रे व