पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/१८५

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प्रकरण २ श्लो० ४०

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है। और इस जहत् स्वार्था लक्षण के मानने पर संपूर्ण ही वाच्यार्थ का त्याग करदेने से तीसरा कोई पदार्थ प्रसिद्ध है नहीं और यदि है तो वह तीसरा पदार्थ असत् जड़ और दु:खरूप है यही कहना होगा और उसके जानने से पुरुषार्थ सिद्ध नहीं होता । अतः महा वाक्य में जहतिलक्षणा नहीं है ! अजहत् स्वाथ लक्षणा भी तत्त्वमसि चाक्य में संभव नहीं है, यह भी जान लेना, क्योंकि वाच्यअर्थ को न त्याग करके अर्थान्तर की प्रतीति अजहत्स्वार्था लक्षणा का लक्षण है। जैसे ‘शोणोधा वति' अर्थात् लाल दौड़ता है इस वाक्य में शोण पदकी लाल रंग वाले अश्वमें श्रजहत्स्वार्था लक्षणा है। इस प्रकार वाच्यार्थ के सहित ही अधिक अर्थ का ग्रहण जहति लक्षणा में किया जाता है। तत्त्वमसि महा वाक्य में जहति लक्षणा भी नहीं है, क्योंकि महा वाक्यों में वाच्यार्थो के विरोध दूर करने के लिये ही लक्षणा मानी है और वह इसके माननेपर भी दूर नहीं होता। इसलिये भागत्याग लक्षणो ही महा वाक्य में मान सकते हैं । शक्य अथ क एक भागका त्याग करके एक भाग को ग्रहण करना भाग त्याग लक्षणा का लक्षण है। इसी का नाम जहत्य जहतीलक्षणा भी है ।
शंका-यह भाग त्याग लक्षणा भी महा वाक्य के तत्त्वमसि पदों में से किसी एक पद में मानने से भी वाच्यार्थो का विरोध दूर हो जाता है, इसलिये दोनों पदों में लक्षणा कहना निष्फल है।
समाधान-महा वाक्यों में यदि केवल तत् पदार्थ में लक्षणा कहोगे तो यह वाक्यार्थ होवेगा कि तत् पद का लक्ष्य जो अद्वय सत्चित श्रानंद रूप ब्रह्म है, वह काम, कर्म और अविद्या के १२ स्वा. सि.