पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/१२५

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प्रकरणं १ श्लो० 7

है। उस भावरूप संबंधका आधार अवस्तुरूप और अन्योऽन्याभाव रूपभेदसंभव नहीं है। यदि कहोकि (अभावः) वहसंबंध भी प्रभाव स्वरूप हैं तो (अन्यः न ) वह अभावरूप संबंध भी संबंधियों से भिन्न नहीं होगा, क्योंकि (समत्वात् ) भेद भी अन्योऽन्या भाव रूप होने से अभाव रूप है और संबंध को भी तुम अभाव रूप ही कहते हो । इस प्रकार दोनों समान ही हैं अर्थात् एक रूप ही हैं । यही नहीं (तत्तत्स्वरूपं अपि न ) वह संबंध अपने. अपने संबंधी स्वरूप भी नहीं है, (अनुभय मिलनात्) दोनों के न मिलने से । भावार्थ यह है कि संबंध पद् का अर्थ मिलना है। अर्थात् दो पदार्थो के मिल जाने का नाम संबंध है । इसलिये दोनों संबंधियों के भिन्न भिन्न स्थित होने से संबंधियों से भिन्नता श्रौर संबंधियों की श्राश्रिता संबंध को नहीं है। अब भावाभाव से भिन्न कोई तीसरा प्रकार संबंध में बन नहीं सकता यह कहते हैं । (तयो:) भेद और भेद के आधार में (भावाभावातिरक्त संबंध रूपं किं अपि नास्ति ) भावाभाव से भिन्न कोई भी संबंध का स्वरूप नहीं है, क्योंकि भाव तथा प्रभाव से भिन्न कोई भी तीसरा प्रकार नहीं है। (तेन) इसलिये अर्थात् दोनों प्रकार से संबंध का निरूपण न होने से (निःसंबंधेपि ) संबंध के न होने पर भी (प्रतीत: ) प्रतीयमान (भेदः शुक्तौ रजतमिव मृषा ) भेद शुक्ति में रजन के सदृश मिथ्या ही है ॥७॥

प्रत्यक्षादिक से सिद्ध इसलिये भेद को अवश्यमानना इसशैक अब िनरसन चाहिये, का करते हैं

संयोगादेरयोगान्नहि भवति भिदा गोचरश्चे

न्द्रियाणां व्यासिनांसंगताया न भवति सदृशी