पृष्ठम्:सिद्धान्तशिरोमणिः.djvu/26

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( १८ ) रचनाकाल प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना के विषय में आचार्य ने स्वयं ही स्पष्ट निर्देश ग्रन्थ में दिया है। जैसे

  • रसगुणवर्षेण मया सिद्धान्तशिरोमणी रचितः? ५

इस वचन से सिद्ध होता है कि इस ग्रन्थ का निर्माणकाल १०७२ शक है। प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना से पूर्व आचार्य ने लल्लाचार्य जी के ‘शिष्यधीवृद्धिद' ग्रन्थ का भाष्य किया है, ऐसा वासनावातिक से सिद्ध होता है। -- - इस भाष्य के अनन्तर ही चार भागों में सिद्धान्तशिरोमणि का निर्माण किया है। इसमें भी प्रथम किस भाग की रचना की इस विचार में जनश्रुति है कि प्रथम पाटी या लीलावती की, द्वितीय में बीजगणित की, तीसरे भाग में ग्रहगणित और चौथे भाग में गोलाध्याय लिखा है। नृसिंह दैवज्ञ' ने उत्त विषय में कहा है कि आचार्य ने पूर्व में ग्रहगणित अर्थात् गणिताध्याय के पाताधिकार तक निर्माण करके पाटी,कुट्टक, वर्गप्रकृति, बीज सूत्रों का । संक्षेप में वर्णन किया है। तत्पश्चात् गोलाध्याय के ईषदोषदिह तक रचना करके यन्त्राध्याय, प्रश्नाध्याय बनाकर उसमें कहा है कि प्रश्नों के उत्तर पाटी आदि में कह दिया हूँ। क्योंकि इस प्रकार के भी सिद्धान्त शिरोमणि ग्रन्थ यत्र तत्र प्राप्त होते हैं। इस प्रकार से सिद्धान्त शिरोमणि का निर्माण करके उदाहरण योजना तथा विशेष सूत्रों के साथ बीजगणित की रचना किया। तथा लीलावती बीज पुस्तक बना कर गोलाध्याय का भाष्य बनाया । तत्पश्चात् गणिताध्याय के भाष्य का निर्माण किया। उत्त विषय उनके कथन से ही स्पष्ट होता है। जैसे

  • 'व्याख्याता प्रथमं तेन गोले या विषमोत्तयः° ।। °अत्रोपपतिर्गीले' 'समंभसूर्या' इत्यादिना कथिता व्याख्याता च । *‘तत्कारणं गोले कथितम्' ।

‘यथा गोले कथितम् । R. सि० सि● ४८२ पृ० R. fo शि० ३ go ३. सि० शि० ४७ पृ० । ४. सि० शि० ५४ पृ० ॥ ५. सि० शि० ५६ पृ० । ६० मि० शि० १३१ पृ० ।