( १६ ) सबसे पीछे १९६० ई० में लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा ‘महाभास्करीय-लघुभास्करीय' का अंग्रेजी अनुवाद तथा टिप्पणी आदि प्रकाशन से प्रथम भास्कर के सिद्धान्त विषय में अच्छा ज्ञान मिलता' है। प्रस्तुत ग्रन्थ कर्ता द्वितीय भास्कर इनकी वंशावली, जन्म स्थान, काल, रचना आदि के विषय में कोई विवाद नहीं है। क्योंकि इन्होंने इस ग्रन्थ के प्रश्नाध्याय के अन्त में स्वयं ही अपना परिचय दिया है। जैसे ‘रसगुणपूर्णमहीसमशकनृपसमयेऽभवन्ममोत्पत्तिः’* इस कथन से इनका जन्म काल १०३६ शक १११४ ई० सिद्ध होता है। जन्मस्थली इन महामनीषी का सह्यपर्वत के पास विज्जडविड नामक ग्राम में वर्तमान में बीजापुर नाम से प्रसिद्ध स्थान में जन्म हुआ था, ऐसा इनके कहने से ही ज्ञात -होता है। जैसे अासीत् सह्यकुलाचलाश्रितपुरे त्रैविद्यविद्वज्जने ॥* इस उक्ति में कुछ विद्वानों का कहना है कि 'जडविड' यही भास्कराचार्य जी के ग्राम का नाम है। क्योंकि वित् जडविड यह पदच्छेद करके वित् पद महेश्वर का विशेषण रूप है । - अन्य लोग* 'विज्जडविड' के आदि के दो शब्दों का अर्थात् 'वित् जड' का का लोप करने से ‘वीडा' यह गाँव मानते हैं। किन्तु शङ्करबालकृष्ण ने इसका खण्डन किया है। अकबर नामक राजा ने १५८७ ई० १५०६ शक में भास्कराचार्यजी की लीलावती का पर्शियन भाषा में अनुवाद कराया था। इस अनुवाद में अनुवादक ने इनकी जन्मभूमि दक्षिण भारत में कहीं ‘वेदर'नाम से स्वीकार की है। किन्तु यह भी सह्य पर्वत के समीप न होने से असङ्गत प्रतीत होती है। खान देश में चालीस गावों में से किसी गाँव से १० मील नैऋत्य दिशा में 'पाटण' नाम का गाँव था। उस गाँव के भवानी मन्दिर में भास्कराचार्य के पौत्र द्वारा १. ल० वि० वि० प्र० महा० भू० ॥ २. सि० शि० ५२४ पृ० ॥ ३- सि० शिo ५२५, पृ० । Y. Tuiaso RS. go 5. भा० ज्यो० ३४५ पृ० ॥ ६. गणक० ३८ ट० ॥
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