॥ अकाराद्यनुक्रमेण कौमुदीपूर्वार्धगतसूत्रसूचिकाः ॥
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सूत्रम् |
पार्श्वम्
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अ
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११ |
अ अ (८-४-६८) |
१२
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१८६९ |
८७१
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८५ |
अकः सवर्णे दीर्घः (६-१-१०१) |
६१
|
५३९ |
अकथितं च (१-४-५१) |
४०३
|
६०१ |
अकर्तर्यणे पञ्चमी (२-३-२४) |
४४२
|
२१४८ |
अकृच्छ्रे प्रियसु० (८-१-१३) |
९५४
|
६२८ |
अकेनोर्भविष्य० (२-३-७०) |
४५७
|
६६४ |
अक्षशलाकासं० (२-१-१०) |
४७८
|
९४४ |
अक्ष्णोऽदर्शनात् (५-४-७६) |
६१८
|
१६२१ |
अगारान्ताट्टन् (४-४-७० ) |
८०६
|
९२४ |
अनग्नेः स्तुत्स्तोम० (८-३-८२) |
६०४
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१२३६ |
अग्नेर्ढक् (४-२-३३) |
७१७
|
७९५ |
अग्राख्यायामुरसः (५-४-९३) |
५३८
|
८८३ |
अग्रान्तशुद्धशु० (५-४-१४५) |
५८४
|
२०० |
अङ्गस्य (६-४-१) |
१२१
|
८५३ |
अड्गुलेर्दारुणि (५-४-११४) |
५७४
|
२०६३ |
अङ्गुल्यादिभ्यष्ठक् (५-३-१०८) |
९२२
|
१४०४ |
अ च (४-३-३१) |
७६१
|
४१६ |
अचः (६-४-१३८) |
२८०
|
५० |
अचः परस्मिन्पू० (१-१-५७) |
३७
|
९४५ |
अचतुरविचतुरसु० (५-४-७७) |
६१९
|
३५ |
अचश्च (१-२-२८) |
२६
|
१२५६ |
अचित्तहस्तिधे० (४-२-४७) |
७२३
|
१४७६ |
अचित्ताददेशका० (४-३-९६) |
७७५
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२९९ |
अचि र ऋतः (७-२-१००) |
१९५
|
२७१ |
अचि श्नुधातुभ्रु० (६-४-७७) |
१६७
|
२५४ |
अचो ञ्णिति (७-२-११५) |
१५६
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सूत्रम् |
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पार्श्वम्
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७९ |
अचोऽन्त्यादि टि (१-१-६४) |
५८
|
५९ |
अचो रहाभ्यां द्वे ( ८-४-४६) |
४३
|
२४७ |
अञ्च घेः (७-३-११९) |
१५३
|
७७० |
अच्छ गत्यर्थवदेषु (१-४-६९) |
५२७
|
९४३ |
अच्प्रत्यन्ववपूर्वा० (५-४-७५) |
६१८
|
२००६ |
अजादी गुणवच० (५-३-५८) |
९०५
|
४५४ |
अजाद्यतष्टाप् (४-१-४) |
३३६
|
९०४ |
अजाद्यदन्तम् (२-२-३३) |
५९३
|
१६६९ |
अजाविभ्यां थ्यन् (५-१-८) |
८१५
|
२०३९ |
अजिनान्तस्योत्त० (५-३-८२) |
९१६
|
२०२८ |
अज्ञाते (५-३-७३) |
९११
|
१९८० |
अञ्चेर्लुक् (५-३-३०) |
८९९
|
८५६ |
अञ्नासिकायाः० (५-४-११८) |
५७५
|
१९७ |
अट्कुप्वाङ्नुम्व्य० (८-४-२) |
११९
|
१४०६ |
अणञौ च (४-३-३३) |
७६१
|
११८० |
अणो ह्यचः (४-१-१५६) |
७००
|
११० |
अणोऽप्रगृह्यस्या० (८-४-५७) |
७५
|
१५६८ |
अण्कुटिलिकायाः (४-४-१८) |
७९६
|
१९१० |
अण्च (५-२-१०३) |
८८१
|
११९८ |
अणिञोरनार्षेयो० (४-१-७८) |
७०५
|
१४ |
अणुदित्सवर्णस्य० (१-१-६९) |
१७
|
१४५२ |
अणृगयनादिभ्यः (४-३-७३) |
७७१
|
१५९८ |
अण्महिष्यादिभ्यः (४-४-४८) |
८०२
|
१०९५ |
अत इञ् (४-१९५) |
६७९
|
१९२२ |
अत इनिठनौ (५-२-११५) |
८८४
|
१६० |
अतः कृकमिकंस० (८३-४६) |
९८
|
११९६ |
अतश्च (४-१-१७७) |
७०५
|
२११३ |
अतिग्रहाव्यथन० (५-४-४६) |
९३८
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