पृष्ठम्:सिद्धसिद्धान्तपद्धतिः अन्ये च.djvu/१४२

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॥ श्रीराम ॥

॥ गोरख उपनिषद् ॥

श्री नाथ परमानन्द है विश्वगुरु है निरञ्जन है विश्वव्यापक है महासिद्धन कै लक्ष्य है तिन प्रति हमारे आदेश होहु ॥ इहाँ आगे अवतरन । एक समै विमला नाम महादेवी किंचितु विस्मय जुक्त भई श्रीमन्महा गोरक्षनाथ तिनसौं पूछतु है । ताको विस्मय दूर करिबै मैं तात्पर्य है लोकन को मोक्ष करिबै हेतु कृपालु तासौं महाजोग विद्या प्रगट करिबे को तिनकै ऐसे श्री नाथ स्वमुख सौं उपनिषद् प्रगट करै है । गो कहियै इन्द्रिय तिनकी अन्तर्यामियासों रक्षा करे है भव भूतन की, तासों गोरक्षनाथ नाम है । अरु जोग को ज्ञान करावै है या वास्तै उपनिषद् नाम है । यातैं ही गोरक्षोपनिषद् महासिद्धनमें प्रसिद्ध है । इहां आगै विमला उवाच ॥ मूलको अर्थ ॥ जासमै महाशून्य था आकाशादि महापंचभूत अरु तिनही पञ्चभूतनमय ईश्वर अरु जीवादि कोई प्रकार न थे तब​ या सृष्टि कौ करता कौन था। तात्पर्य ए है कि नाना प्रकार की सृष्टि होय वै मै प्रथम कर्ता महाभूत है अरु वैही शुद्ध सत्वांशले कै ईश्वर भए वैही मलिन सत्व करि जीव भये तौएतौ साक्षात् कर्ता न भए तब जिससमै ए न थे तब कोई अनिर्वचनीय पदार्थ था। सो कर्त्ता सो कर्त्ता कौन भयो ऐसे प्रश्न पर । श्री महागोरक्षनाथ उत्तर करेै है श्री गोरक्षनाथ उवाच । आदि अनादि महानन्दरूप निराकार साकार वर्जित अचिन्त्य कोई पदार्थ था ताकुं हे देवि मुख्य कर्ता जानियै क्यों कि निराकार करता होय तौ आकार इच्छा धारिों में विरुद्ध आवे है । साकार करता होय तौ साकार को व्यापकता नहीं है यह विरुद्ध आवै है। तातैं करता ओही है जो द्वैताद्वैत रहित अनिर्वचनीय नाथ सदानन्द स्वरूप सोही आगे कुं वक्ष्यमाण है।