स्वैर स्वैर ( दि० ) १ स्वेच्छाचारी | मनमौजी | २ खुलं- खुला | ३ मंद | धीमा | ४ सुस्त | काहिल । ५ ऐच्छुक 1 स्वैरं ( न० ) स्वेच्छाचारिता | मनमौजीपना | स्त्रैरं ( अव्यया० ) १ अपनी मर्जी के मुताविक । २ अपनी मौज के अनुसार ३ धीमे धीमे । आहिस्ता आहिस्ता ४ अस्पष्ट रूप से। ऐसी धीमी आवाज़ से कि सुनने ही में न आवे स्पष्ट का • ह ह-संस्कृत वर्णमाला का अन्तिम वर्ण । ह ( अन्यथा० ) अपने से पूर्वगन शब्द पर जोर देने वाला अध्यय विशेष । २ सचमुच, निश्वत्र, दर- हकीकत शब्दों के अर्थ को भी यह सूचित करता है | ३ वैदिक साहित्य में यह पूरक का भी काम देता है और उस दशा में इसका अर्थ कुछ भी नहीं होता । यथा:- "तस्वशर्त जाया बभूवुः ।" यह पर्वतार ऊपतुः । ४ यह कभी कभी सम्बोधन के लिये और कदाचित् घृणा और उपहास के लिये भी प्रयुक्त किया जाता है ( पु० ) ३ जल | २ आकाश | ३ रक्त | खून ॥४ शिवजी का एक रूप । हंसः ( पु० ) [ इसकी व्युत्पत्ति हस् से बतलाई जाती है। "भवे इर्खागमाद् हंस " -सिद्धान्तकौमदी ] १हंस नाम का एक पक्षी [ इस पक्षी का जो वर्णन संस्कृत साहित्य में दिया हुआ है वह वास्त- विक कम किन्तु काव्यमय है। कवियों ने इसे ब्रह्मा जी का बाहन लिखा है। और वर्षा ऋऋतु के आरम्भ में इसका मानसरोवर को चला जाना लिखा है। अधिकांश कवियों के मतानुसार हंस में यह शक्ति हैं कि, वह दूध में मिले हुए जल को दूध से अलग कर दे । यथा:- इस स्वैरिणी. (स्त्री० ) व्यभिचारिणी स्त्री | स्वैरिन् ( वि० ) स्वेच्छाचारी | मनमुखी । स्वैरिन्त्री देखो सैरंत्री । स्वारसः (पु० ) चिकने पदार्थों का वह तलछूट जो पत्थर से पिसा हुआ हो । स्वोवशीयं ( न० ) आनन्द | सुख समृद्धि ( विशेष कर भविष्य जीवन सम्वन्धी ) । सारे तसो ब्राह्ममपास्य ईसो यथा रिणिवांडुमध्यात् । अन्यच्च नीर र विवेक सालस्यं त्वमेव तनुषे चेत् । faxafengyayaraff २ परग्रहा। परमात्मा ३ जीवात्मा | ४ शरीरगत पवन विशेष | ५ सूर्य | ३ शिव | ७ विष्णु | कामदेव | ६ सन्तुष्ट राजा । १० साधु विशेष | ११ गुरु | १२ कल्मष रहित पुरुष | १३ पर्वत - अंध: ( पु० ) सेंदुर । ईंगुर ।-अधिरूढ़ा, ( स्वी० ) सरस्वती |-अभिरू (न० ) चांदी | --कान्ता, (स्त्री० ) हंसी। कीलकः, (पु०) रतिबन्ध । - गति, ( वि० ) हंस जैसी चाल | -गद्दा, (वि० ) मधुरभाषिणी स्त्री |- गामिनी, ( श्री० ) १ इंस जैसी चाल चलने वाली स्त्री। २ ब्रह्माणी । - तूलः, (पु०) तूलं, (न० ) हंस के कोमल पर। -दाहनं, (न० ) अगर नादः, (५०) हंस की बोली --नादिनी, ( श्री० ) विशेष प्रकार की स्खी जिसकी परिभाषा यह है :- गजेन्द्र गममा तम्बी कोकिलाशापसंयुता । निर्तयेगुर्विी या स्यात् सा हा हंसनादिनी ॥ --माला, ( स्त्री० ) हंसों का उड़ान विशेष | युवन्, (पु०) हंस का वस्था । – रथः, -वाहनः ( पु० ) ब्रह्मा के नामान्तर 1 ~राजः, (पु० सं० श० कौ०-१२०, '
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