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पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/९७२

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हो । ५ कामदेव 1 – चरः, ( पु० ) स्वेच्छानुसार चुनाव अपने थाप ( अपने लिये पति को । चुननाचरा (श्री० ) वह युवती जो अपने पति को अपने आप चुने। वर (धा उ० [ घरयति-वरयते ] शेष निका- लना । ऐव जोई करना । कलह लगाना | भर्त्सना करना | फटकारना । धिक्कारना । स्वल्प स्वरित ( वि० ) १ स्वरयुक्त | २ गोथित किया हुआ | बाँधा हुआ। ३ स्पष्ट उच्चारित | ४ वक्रीभूत | स्वरुः (पु० ) १ धूप | २ यज्ञ-स्तम्भ का भाग विशेष | ३ यज्ञ | ४ वज्र | १ तीर । स्वरुस ( पु० ) वज्र । स्वर्गः ( पु० ) स्वर्ग | इन्द्रलोक -आएगा, (स्त्री०) स्वर्गगङ्गा । - श्रोकस (पु०) देवता । - गिरिः, ( पु० ) सुमेरुपर्वत 1 ~द, प्रद, ( वि० ) स्वर्ग प्राप्ति करने वाला ।-द्वारंः, ( न० ) स्वर्ग का फाटक /-पतिः, -भर्तृ, (पु० ) इन्द्र- लोकः, (पु० ) १ स्वर्गलोक । २ स्वर्ग :- वधू, -स्त्री, ( श्री० ) अप्सरा साधनं, ( न० ) स्वर्ग प्राप्ति का उपाय | वर ( अव्यया० ) १ स्वर्ग २ इन्द्रलोक जहाँ पुण्यात्मा जन अपना पुण्यफल भोगने को अस्थायी रूप से रहते हैं। ३ प्रकाश अन्तरिक्ष ४ सूर्य और ध्रुव के बीच का स्थान ५ तीन व्याह- तियों में से तीसरी व्याहति । – प्रापगा, - गङ्गा. ( स्त्री० ) आकाशगंगा - गति, ( करी० ) गमनं, ( न० ) १ स्वर्गगमन | २ मृत्यु | मौत । - तरुः (= स्वस्तरुः ) ( ५० ) स्वर्ग का वृक्ष । —द्वश, ( ४० ) १ इन्द्र ३ सोम 1 - नदी (= स्वर्णदी) ( श्री० ) वाला । स्वर्गीय गङ्गा । - मानवः, ( पु० ) बहुमूल्य रत्न | स्वर्ण (न०) १ सुवर्ण | २ मोहर । अशर्फी। अि विशेष /-भानु:, ( पु० ) राहु का नामान्तर । ( पु० ) गंधक कणः, कणिकः, (पु० ) - मध्यं. ( न० ) आकाश का मध्य विन्दु - रत्ती भर सोना । काय, ( वि० ) सुनहले शरीर लोकः, (पु० ) स्वर्गलोक । स्वर्ग बहिश्त | वाला -कायः, ( पु० ) गरुड़ /कार, वधूः, ( छी० ) अप्सरा वापी, (म्बी० ) ( पु० ) सुनार । -गैरिक, ( न० ) गेरु | - गंगा । - वेश्या, ( स्त्री० ) अप्सरा वैद्य, चूड़ः, ( पु० ) नीलकंठ | २ मुर्गा । --जं. ( पु० वि० ) अश्विनी कुमार। - बा. ( स्त्री० ) १ ( न० ) जस्ता | टीन 1- दीधितिः, ( पु० ) सोम का नामान्तर । २ इन्द्र वज्र का नामान्तर | अग्नि-पत्तः, ( पु० ) गहड़ का नाम - वरः (पु०) १ ध्वनि। शोर । २ आवाज़ | ३ सरगम | पाठकः, ( पु० ) सोहागा 1- पुष्पः, ( पु० ) ४ सात की संख्या । ५ स्वरवर्ण । उदात्त, धनु- चंपक वृद्ध वंध: ( पु० ) सोने की धरोहर । दात्त और स्वरित । ७ स्वांसा। पवन जो नथुनों में भृंगारः, ( पु० ) सोने का यज्ञीय पात्र विशेष | होकर निकले खर्राटा सोते समय नाक से - मात्तिकं, ( न० ) सोनामक्खी 1- रेखा, निकलने वाला खर्राटे का शब्द । ग्रामः, ( पु०) -लेखा, ( स्त्री० ) सोने की लकीर | वणिज, सरगम - मण्डलिका, ( श्री० ) वीणा |- ( पु० ) १ सोने का व्यापारी । २ शराफ़ - लासिका, ( श्री० ) बाँसुरी 1-शून्य, (वि०) वर्णा, ( श्री० ) हल्दी । सङ्गीत रहित । संयोगः, ( पु० ) स्वरवर्णों का मेल 1-~संक्रमः, ( पु० ) सरगम | सामन, ( पु० ) ( बहुवचन ) यज्ञकाल का दिन विशेष । रवत् ( वि० ) १ स्वर या. आवाज वाला | २ जबानी | ३ स्वरयुक्त । स्वर्गिन् (पु० ) १ देवता | २ मुर्दा । मृतपुरुष | स्वर्गीय ) ( वि० ) स्वर्ग का स्वर्ग सम्बन्धी जाने वाला | स्वर्ग में प्रश्बन्धी ने स्वद् (धा० आर० ) [ स्वर्दते ] स्वाद लेना । का लेना । स्वल ( धा०प० ) [ स्वलति ] चलना । जाना । स्वल्प (त्रि०) [तुलना में स्वल्पीयस्, स्वल्पिष्ठ ] १ बहुत कम या थोड़ा। तुच्छ अत्यन्त हस्व |