पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/९२१

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

र, सान्तर बीच के अवकाश वाला। ) १ फैला हुआ । सघन ( वृक्ष ) | अन्सान का साधन विशेष ३ | । ४ सन्तान वृक्ष सम्बन्धी । ० ) वह माहाण जर सन्तानोत्पत्ति जथे विवाह करे । । ●) [ सान्त्वयति- सान्त्वयते ] ता। शान्त करना । ( शोक ) दूर ढाँरस । आश्वासन । चित्त की शान्ति सुख शान्ति देने का काम । किसी दुःखी आदमी को उसका दुःख हल्का करने के लिये समझा बुझा कर शान्त करने का काम | ( पु० ) परराष्ट्रप्रचिव वह अमात्य जिसके अधिकार में अन्य र, विग्रह, सुलह, जंग करना हो । ) [ बी०सान्ध्यी ] सन्ध्या 1 ३० ) [ सांतहनिकी ] १ कवच- । अरहवन्तर पहने हुए। ला हुआ हवन के लिये शाकल्य | सामक सांनिध्यं ) (न०) १ नैक | सामीप्य | २ उपस्थिति सान्निध्यं) विद्यमानता | 1 मनिपातिक ) (वि०) [स्त्री०-मान्निपानिको ] १ सान्निपातिक फुटकल | उखन डालने वाला। उला हुआ ३ वह रोगी जिसके कफ, पित्त और वायु गड्बड़ा गये हों । ) श्रीकृष्ण के विद्यागुरु का नाम । 1 ) [खी०सी ] एक | सापत्न्यः ( पु० ) १ सौत का बेटा | २ शत्रु | बैरी | ट में होने वाला । तात्कालिक | देखते सापराध (वि० ) अपराधी | मुजरिम वाला । साविधं है १ घना | गहरा। घोर । २ मत || सापिण्डयं ( ( न० ) सपिंड होने का भाव या धर्म | ३ विपुल । अधिक। अत्यधिक ४ ५ स्निग्ध | चिकना । ६ मृदु । । ७ मनोहर । सुन्दर | खूबसूरत गुच्छा स्तवक राशि | ढेर | } १ शौडिक | कलवार ! वह जो बनाता हो । २ वह जो सन्धि करता | नेवाला । सांन्चालिकः ( पु० ) १ वह ब्राह्मण जो चतुर्थ आश्रम अर्थात् संन्यासाश्रम में हो | २ कोई भी भिक्षुक सान्वय (वि० ) पुश्तैनी। पैतृक सापत्न (वि० ; [ वी०- सापत्नी ] सौत की कोख से उत्पन्न या सौन सम्बन्धी । सावला: (पु० बहु० ) एक ही पति से कई एक पत्नियों की कोख से उत्पन्न लड़के | सान्त्यं ( म० ) १ सौत की दशा सौतियाभाव | २ प्रतिद्वन्द्वता | स्पर्धा | वैर भाव | सापेक्ष ( वि० ) अपेक्षित | अपेक्षा सहित । साप्तपद् } (दि० ) [ स्त्री० सातपड़ो ] सात सातपदीन पग चलने से अथवा सात वाक्य प में कहने सुनने से उत्पन्न हुई मैत्री या सम्बन्ध | साप्तपदं ( म० ) १ भाँवर | फेरा | २ मैत्री | दोस्ती । साप्तपौरुष (वि० ) [ साप्तपौरुषी ] सात पीढ़ी तक या सात पीढ़ियों का। साफल्यं ( न० ) १ सफलता | कृतकार्यता | उपयो गिता | २ लाभ । फ़ायदा | साब्दी (स्त्री० ) एक प्रकार के अंगूर साभ्यस्य ( वि० ) डाही । ईर्ष्यालु | साम् ( घा० उ० ) [ सामयति सामयते ] शमन करना | शान्त करना । सामकं ( २० ) वह मूल धन जो ऋण स्वरूप लिया या दिया गया हो।