पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/९१३

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सर्ज सजः (पु०) १ साल का पेड़ । २ रात । --नियसकः ! –मणिः, - रसः, ( पु० ) राल । सर्जकः ( पु० ) साल वृक्ष | सर्जनं (न०) १ त्याग | विराग २ छुटकारा | मुक्ति । ३ सिरजन | ४ निकालना । ५ सेना का पिछला भाग । सर्जिः सर्जिका सर्जी ( ६०७ ) ( स्त्री० ) सज्जी खार या क्षार विशेष | सर्जू: ( पु०) १ व्यापारी । (स्त्री०) बिजली । विद्युत् । २ गले की सकरी । ३ गमन | अनुवर्तन | सर्पः ( स्त्री० ) १ धूम धुमाव की चाल । २ बहाव । ३ सौंप - रातिः- (पु० ) १ न्योला । नकुल । २ मयूर । मोर ३ गरुड़ – अशनः, ( पु० ) मयूर । मोर। - आवासं, इष्टं, (न०) चन्दन का पेड़ | - वत्रं, (न० ) कुकुरमुत्ता । कटफूल । —तृणः, (पु० ) न्योला । नकुल 1- दंष्ट्र:, ( पु० ) साँप का विषदन्त - धारकः, ( पु० ) कालबेलिया । सर्प पकड़ने वाला |-- भुज् (५०) १ मयूर २ सारस | ३ बड़ा सौंप -मणिः, ( पु० ) सर्प के फन का रत्न - राजः, ( पु० ) वासुकी का नामान्तर । सर्पणं ( न० ) १ रेंगन । फिसलन | २ वक्रगति । ३ बाण का ऐसा प्रक्षेप जो ज़मीन से मिलता जुलता जाकर अपने निशाने पर लगे । सर्पिणी ( स्त्री० ) १ साँपिन | २ रूखरी विशेष | सर्पिन् (वि० ) रेंगनेवाला। सरकने वाला। चक्रगति से चलने वाला । सरधा सब । हरेक | २ समुवा निनान्त सम्पूर्ण - अं ( ० ) समस्त शरीर /- अंगीण (वि०) सर्व शरीरगत समस्त शरीर में व्यात अधि- कारिन्, – अध्यतः, ( पु० : जनरल सुपरिटेंडेंट | व्यवस्थापक प्रशीन, ( वि० ) हर प्रकार का अनाज खाने वाला सर्वानभोजी । श्राकारं, ( न० ) समूचेपन से बिल्कुल । सम्पूर्णतः - प्रात्मन् (५०) समूचा जीव या रूह | सर्वात्मना। - ईश्वरः ( पु० ) सर्वेश्वर | सब का मालिक | - ग, -गामिन्, ( वि० ) सर्वगत | सर्वव्यापी | - जितू ( वि० ) अजेय सर्वजयी - विदु, (वि०) सर्वज्ञ सब जानने वाला । ( पु० ) १ शिव । २ तुद्धदेव |– इमन, (वि०) सब को दमन करनेवाला । --नामन, (न०) सर्वनाम | मना (स्त्री० ) पार्वती का नाम :- रमः, ( पु० ) रात / – लिंगिन्, ( पु० ) नास्तिक । पायएडी। -व्यापिन्, (वि० ) सर्वव्यापी । वेदस, ( पु० ) यश में सर्वस्य दक्षिणा देने वाला यज्ञकर्त्ता ।—सहा, (सर्वसहा भी ) ( स्त्री० ) पृथिवी । - स्वं, (न० ) १ सकल धन | सारा धन । २ किसी वस्तु का सार । सर्वः ( पु० ) १ विष्णु । २ शिव । सर्वकप ( वि० ) सर्वनाशक | सर्वशक्तिमान | सर्वकषः ( पु० ) धूतं । वदमाश | सर्पिस् ( न० ) घी । घृत । -समुद्रः, ( पु० ) सप्त समुद्रों में से एक। घी का समुद्र । सर्पिष्मत् ( वि० ) ची मले हुए। सर्व (धा०प० ) [ सर्वति ] जाना । [! सर्वतस् (अव्यया०) १ सब ओर से | सब तरह से । २ सर्वत्र चारों थोर । ३ सम्पूर्णत: । -गामिन, ( वि० ) सवैन जा सकने वाला भद्रः, ( पु० ) १ विष्णु का रथ | २ बाँस ३ छन्द विशेष | ४ भवन या देवालय जिसमें चारों ओर चार द्वार हो । -भद्रा, (स्त्री०) नृत्यको । नाटक की पानी । नटी । -मुख, (वि० ) पूर्ण | हर प्रकार का । वसीम । —मुखः, ( पु० ) १ शिव जी । २ ब्रह्मा जी । ३ परब्रह्म जीवात्मा | ५ ब्राह्मण | ६ अग्नि | ७ स्वर्ग । सर्मः ( पु० ) १ गमन । गति । २ आकाश | सर्व (घा० प० ) [ सर्वति ] वध करना । अनिष्ट | सर्वत्र ( श्रन्यया ० ) : सब जगह | सब जगहों पर । २ करना। घायल करना । सब समय सब समयों में । सर्व ( सर्वनाम वि० ) [ कर्ता बहुवचन सर्वे पु० ] सर्वथा (अन्यया०) १ हर प्रकार से सब तरह से।