पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/९

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( ४ ) प्रकुत ५ अत्यधिक । अतः ( क्रि० वि० ) यह न हो । तीषण | चोख । २ सीब । खरा। तेज़ । ३ विना रोकाटोका हुआ । ४ निर्दिष्ट | अकेला कहीं नहीं प्रयुक्त होता। इसका अर्थ है जो कहीं से न हो। कुतोभय ( वि० ) सुरक्षित | जिसे किसी का भय न हो । अकुप्यं ( न० ) १ सुवर्ण । २ चाँदी | ३ कम कीमती धातु नहीं। अकुशल ( वि० ) १ जो निपुण न हो । अनाड़ी । २ अशुभ | अभागा । अकुशलं (न०) विपत्ति अपार ( पु० ) बुराई । अहित । समुद्र । २ सूर्य १३ बड़ा कछुआ। वह विशाल कछुआ जिसकी पीठ पर पृथिवी टिकी हुई मानी जाती है। ४ पत्थर | चट्टान । अ (वि० ) कपटशून्य । शठता रहित । चातुर्य- विहीन । छलविवर्जित । अकृच्छ्र (वि०) सरल | सहज । –म् (न०) सरलता । आसानी । अक्ष प्रकृष्ट (वि० ) अनजुती हुई। जो न जोती गयी हो -पथ्य, रोहिनू ( न० ) जो अनजुती ज़मीन में उत्पन्न हुआ हो। कृष्णकर्मन (वि० ) निर्दोष । निर्मल | (पु० ) सुपाड़ी का वृक्ष । कोविद ( वि० ) मूद्र । अपण्डित । मूर्ख । का (स्त्री० ) माता । व्यक्त ( वि० ) १ जोड़ा हुआ | २ गया हुआ ३ बाहर रुफ फैला हुआ । ४ तैलादि की मालिश किया हुआ अत (स्त्री० ) रात्रि । [ ( न० ) वर्म | कवच | जिरहबगतर | (०) अंडबंड | क्रमः (पु० ) गड़बड़ी । अनियमितता | व्यक्रिय (वि० ) सुख | क्रियाशून्य । अयि (स्त्री० ) क्रियाशून्यता | सुस्ती । कर्त्तव्यपालन में सावधानी । प्रकृत (वि० ) १ जो न किया गया हो । जो ठीक ठीक न किया गया हो। जिसके करने में भूल की गयी हो । २ अपूर्ण अधूरा। जो तैयार न हो । ३ जो रचा न गया हो । ४ जिसने कोई काम न किया हो। ५ अपक्क| कच्चा । जो पका न हो।-ता (स्त्री०) बेटी होने पर भी | जो बेटी न मानी जाय और जो पुत्रों के समकक्ष मानी जाय । -तं ( न० ) १ किसी कार्य को न करना । २ पूर्ण कर्म । अर्थ ( वि० ) असफल । अनुत्तीर्णं ।—स्त्र ( वि० ) जिसको हथियार चलाने का अभ्यास न हो । - श्रात्मन् (वि०) अज्ञानी अबोध । मूर्ख । परब्रह्म या परमात्मा से भिन्न | उद्वाह (वि० ) अवि- वाहित । —ज्ञ (वि० ) १ जो कृतज्ञ न हो । जो किये हुए उपकार को न माने । कृतघ्न | नाशुकरा | २ अधम । नीच। -धी, बुद्धि ( वि० ) अज्ञ। श्रबोध। मूर्खं । प्रकृतिन् (वि०) कुसित । अकुशल । असुविधाजनक । अक्रूर (वि० ) जो क्रूर या कठोर न हो। जो संगदिल न हो। अक्रूरः ( पु० ) एक यादव का नाम, जो कृष्ण के चचा और हितैषी थे। क्रोध (वि०) क्रोधशून्य | शान्त । धः (पु० ) शान्त | क्रोधराहित्य | व्यक्किा (स्त्री० ) नील का पौधा अष्ट (वि०) १ कटरहित । विना क्लेश का | २ सुगम सहज | आसान। यत् (धा० परस्मै० ) [ क्षति, अघणोति, अक्षित ] १ पहुँचना । २ व्यास होना । ३ घुसना ४ एकत्र करना जमा करना । ः (पु० ) धुरी। किसी गोल वस्तु के बीचों बीच पिरोयी हुई वह लोहे की छड़ या लकड़ी जिस पर वह गोल वस्तु घूमती है। २ गाड़ी | छकडा | ३ पहिया ४ तराजू की डांड़ी। 4 एक कल्पित स्थिर रेखा जो पृथिवी के भीतरी केन्द्र से होती हुई उसके आर पार दोनों ध्रुव पर निकली है और पर पृथिवी घूमती हुई मानी जाती है । ६ चौंसर का पाँसा | चौंसर । ७ रुखाय । ८ तौल विशेष जो १६ माशे की होती है और जिसे कर्प भी कहते हैं । ६ बहेड़ा। १० सर्प