शूरमन्य शूरंमन्य (वि० ) वह पुरुष जो अपने को शूर लगाता हो। ( २ ) ( म० ) ) सूप (पु० ) दो दोष को एक शूर्पः (पु० ) ) तौलकर्णः, (पु० ) हाथी । -खखा, राखी, (स्त्री० ) वह जिसके ना- खून खूप जैसे हों। रावण की बहिन का नाम । -~चातः, (पु० ) सूप से निकाली हुई हवा । -श्रुतिः, ( पु० ) हाथी | सूप (स्त्री० ) छोटा सूप | २ सूपनखा का नामी- न्तर । शूर्भुः १ (५० ) [स्त्री०- शुर्मिका, शूम ] १ शूमि: ) लोहे की बनी मूर्ति । २ निहाई । शूल ( धा०प० ) [ शून्नति ] बीमार होना। २ बहुत शोर करना ३ गड़बड़ी करना। भी उन पीड़ा या दर्द। २ वाय गोले का दर्द | ६ गठिया बतास । ७ मृत्यु ८ कंड़ा। पताका। - घटान्,- धर, घारिन् धृक् पाणिः -- - भृत्, ( पु० ) शिव जी का नामान्तर/-शत्रुः, ( पु० ) रेंड का रूख ) --स्थ, दिया हुआ-हंडी, ( स्त्री० ) जौ-हस्तः, (पु० ) भाला धारी। (वि० ) सूली एक प्रकार का शूलकः ( पु० ) हकने वाला घोड़ा । शुलाकृतं ( न० ) भुना हुआ गोश्रत । शूलिक ( चि० ) १ शूलधारी २ वायु गोले से पीड़ित । ( पु० ) भालाधारी २ खरगोश | ३ शिव जी का नामान्तर । शूलं ( ० ) १ १ प्राचीन कालीन एक यक्ष, जो शूल: ( पु० ) । प्रायः वरने के आकार का होता था। सूली जिससे प्राचीन काल में लोगों को प्राणदण्ड दिया जाता था । लोहे की खी शृंखलका, } (पु० ) १ अंजीर | २ ऊँट ॥ लपेट जाती है। ४ कोई शूलिन: ( पु० ) १ भागडीर वृद्ध २ गूलर का पेड़ | उदुम्बर शूल्य ( वि० ) 1 सींक पर भुना हुआ। २ सूली पाने का अधिकारी । शूल्यं ( ज०) भुना हुआ गोश्त शूष ( चा० प० ) [ शुषति ] उत्पन्न करना | शृगक शृङ्गक शृगक, शृङ्गक , ट्रकालः ( पु० ) गीदव | 1 शृगालः (पु० ) १ गीदड़ सियार २ दुरावा । धोखेबाज़ छलिया कपटी | ३ मीरु | डरपोंक। ४ पटुभाषी बदमिजाज़ २ कृष्ण का नामान्तर -कैलि. (पु०) एक प्रकार का बेर या उशाव -योनिः . ( पु० ) अगले जन्म में शृगाल के शरीर में उत्पत्ति रूपः, ( पु० ) शिव जी का L रूपान्तर | शृगालिका ) ( स्त्री० ) १ गीदड़ी | सियारिन । २ शृगाली लोमड़ी ३ भमाद | पलापन | डलं डुलः (१० ) ) लोहे की जंजीर | बेदी । २ ना] (जी०) जंजीर। ३ हाथी के पैर में बाँधने ( न० ) ) की जंज़ीर कमरपेटी जरीब नापने की जंजीर - यमकं, (न० ) एक प्रकार का अलंकार जिसमें कथित पदार्थों का वर्णन शृङ्खला के रूप में सिलसिलेवार किया जाता है । शृंखल} (चि० ज़ुशीर में बंधा हुआ । की चोटी। S श्रृंगं, }( न० ) १ सींग | २ पहाड़ शृङ्गम् भवन का सब से ऊँचा भाग | ३ ऊँचाई। आधिपत्य बालचन्द्र का शृङ्गाकार अप्रभाव। ६ चोटी या आगे निकला हुआ भाग ७ सींग (भैंस आदि का ) जो बजाया जाता है। पिचकारी अनुराग का उद्देक १० चिन्ह | निशानी) ११ कमल (उच्चयः ( पु० ) बड़ी ऊँची चोटी~जः (पु० ) तीर । -जं. (न० ) अगर ।-प्रहारिन्, (वि० ) सींग मारने वाला। -प्रियः, (पु०) शिव का नामान्तर - -मोहिन, ( पु० ) चंपा का वृक्ष वेरं. (न० ) १ गंगा- तट पर के एक प्राचीन नगर का नाम जो आधुनिक मिर्जापुर के समीप था। २ अदरक | शृंगकः ( पु० ) शृद्धकः ( 50 ) श्रृंगकं (न० : शृङ्गकं ( न० ) १ सींग | २ बालचन्द्र का शृङ्गा- > कार अप्रभाग १ कोई नोकदार चीज़ | ४ पिचकारी ।
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