पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/८२८

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धन मना से एक वह अहह्मचारी जिसने गुरु के निकट रह व्रत तो समाप्त कर लिया हो किन्तु वेशध्ययन · पूरा किये ही बिना घर हो व्रततिः ) ( श्री० ) मती ) वृद्धि | प्रतिन (वि० ) व्रतधारी ( पु० ) मह्मचारी २ यजमान यज्ञ करने वाला। 1 [1] वेता ( २ ) फैजाव तपस्वी भक्त धर्मात्मा महात्मा ३ ब्रह्म (धा०प० ) [ काटकर करना फाडना नं (न० ) काट चीरना| घाव करना बश्नः ( ० ) आरी २ सुनार की रेती प्राजिः ( स्त्री० ) तूफान आंांधी। व्रातं ( न०१ शारीरिक अन परिश्रम या मज़दूरी जो जीविका के लिये की जाय। मजदूरी २ ह ३ नैमित्तिक धंधा | ] काटना करना। ज्ञातः ( पु० ) समूह समुदाय यातीन (चि० ) कुक्षी | उजरत लेकर काम करने वाला मज़दूर चो (श०० ) [ छोड़ा जाना चुनना पसंद करना [ ० माना चुना जाना यांडू (चा०प० ) [ शमीना २ फना श श-संस्कृत अथवा नागरी वर्णमाता में तीसवाँ व्यञ्जन वर्ण। इसका उच्चारण स्थान प्रधानतया तालु है ! अतः इसे तालव्य " " कहते हैं। यह महामाय है और इसके उचारण में एक प्रकार का धर्पण होने के कारण इसे अष्म भी कहते हैं। यह बीड: ( उ० ) : ब्रीडा (श्री० ) पटना | १ ] डॉटना | afer होना । १ शर्म । लजा २ विमता | विनय शीघ्र ००) लजित करना। शर्माना। द्री (धा०प०) [ बीसति वीसयति वासयते । अनिष्ट करना हनन करना | मार डालना। बीहिः (पु० चावल २ का कण- अगरं, (न० ) अनाज की खत्ती या भंडारी- कांचनं, (न० ) मसूर की दाल (राजिक, ( न० ) ना धान क्रुडू (धा०प०अच्छादन करना । २ जमा किया जाना ढेर लगाया जाना ३ देर करना जमा करना ४ बूड़ना दूयना । 1 वस् ( था० प० ) देखो वीस् हेग (वि० ) [ स्त्री-वैयी ] चांवल के योग्य | २ पाँवों के साथ बोया हुआ नान्यः ( पु० ) १ वह द्विज जो समय पर संस्कार विशेष कर यज्ञोपवीत संस्कार के न होने से पवित हो गया हो, जिसे वैदिक कृत्यादि करने का अधिकार वैदेयं ( न० ) धान का सेन यह खेत जिसमें धान उग सके । न रह गया हो। २ नीच आदमी कमीना पुरुष | } ३ वर्णसङ्कर विशेष जिसकी उत्पत्ति शुद्ध पिता और | ब्ली ( धा०प० ) [ कितनाति, दीनाति निन् त्रिवाणी माता में हुई हो ब्लेपयति ] १ गमन करना जाता २ समर्थन अपने को आस्य बतलाने वाला 1 -ब्रुवः, ( पु० ) - स्त्रोमः, (पु० ) - करना । लदारा देना । ३ चुनना । छटना | प्राचीन कालीन एक यज्ञ जिसे वाध्य लोग अपना ! ब्ले ( धा० उभ० ) [ ब्लेनयति-प्लेजयते ] अत्यपना दूर करने के लिये किया करते थे । देखना अवक्षेकन करना । }

आभ्यन्तर प्रयक्ष के विचार से ईनस्ट है और इसमें वाह्य प्रयत्न धाय और घोप होता है। ( म०) आनन्द । हये । प्रसन्नता | शः ( पु० ) १ काटने वाला | नाश करने वाला : २ हथियार । ३ शिवत्री का नाम ।