( ४५८ पचन्, पञ्चन् २ पंचमकार ( तांत्रिकों के ) [ था मद्य, माँस, मत्स्य मुद्रा और मैथुन 1) - तंत्रम्, (न० ) एक नीति विषयक संस्कृत का ग्रन्थ जिसमें पाँच अध्याय है और जिसमें पाँच नैतिक विषयों का उल्लेख किया गया है ।-तन्मात्रम्, ( न० ) इन्द्रियों से ग्रहण किये जाने वाले पाँच विषय, यथा शब्द, रस, स्पर्श, ! रूप और गन्ध |-- तपसू, ( पु० ) वह साधु जो ! श्रीष्मऋतु में सूर्याताप में अपने चारों और चार जगहों में आग जला तथा पाँचवें सूर्य के श्राप से पंचाग्नि सापता है।-तय ( वि० ) पाँचगुना । -तयः, ( पु० ) यञ्चक । पञ्चवन्धन |-तिकं, ( न० ) पाँच कड़वी दवाइयां- [ नियातापपटोशनिदिग्धिकाच " --त्रिंशः, ( पु० ) ३५व :- त्रिंशत् - त्रिशतिः, ( स्त्री० ) ३५ । पैतीस । -दश, (वि० ) १५ वौँ । १५ से बढ़ा हुआ अर्थात् पन्द्रह अधिक। यथा पञ्चशतं दशं यानी ११५ -दशन, ( वि० ) ( बहु ) १२ | पन्द्रह - दशिन, ( वि० ) १५ से बना हुआ ( स्त्री० ) पूर्णिमासी/दीर्घ, ( न० ) शरीर के पांच दीर्घ भाग; अर्थात् केशवम् । 21 बाहू नेत्रद्वयं फुतिवें तु नाते तयॆश्व छ स्तमयोरन्तरम् चैव पञ्चदीषं प्रचक्षते ॥” -देवताः, (पु० ) पाँच देवता यथा यादिश्यं गणनायं देवीं पञ्चदेवतमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत् -- नखः (पु० ) पांच नखों वाले कोई जीव २ हाथी | ३ कछवा | ४ सिंह या चीता |–नेदः, ( पु० ) पंजाब जहाँ पाँच नदियाँ है। [ शतद्, विपाशा, इरावती, चन्द्रभागा और वितस्था। इनके आधुनिक नाम है। सतलज, व्यास, रावी, चिनाव और झेलम] –नदाः, ( पु० बहु० ) पंजाव प्रान्त वाली 1-नवतिः, (स्त्री० ) ६५/- नीराजनं, ( न० ) किसी देवविग्रह के सामने पाँच वस्तुओं का घुमाना यथा, दीपक, कमल, वस्त्र, आम और पान ---पञ्चाश, (वि० ) पचपनवां | २३वौँ । - पश्चाशत् (स्त्री० ) २२ । पचपन । -पढ़ी, ( स्त्री० ) पाँच कदम (-पर्वन, ( न० बहु० ) पाँच पर्व यथा-- ) पचन्, पञ्चन् चतुर्दश्यमी चैव समावास्या व पूर्णिमा | पर्वापयेतानि राजेन्द्र रविसंक्रांतिरेवच " - पादू, ( वि० ) पाँच पैरों का /- ( पु० ) संवत्सर । पात्रं, ( न० ) पाँच बरतनों का समूह | २ श्राद्ध विशेष जिसमें पाँच पात्रों में रख कर भोग लगाया जाता है ।-पितृ, ( पु० बहु० ) पाँच पिता यथा । "जमफशपोषनेता च यच कन्यां प्रयच्छति । अन्नदाता भगवान्ता पञ्चैते पितरः स्मृताः ॥” -प्राणाः, ( पु० बहुवचन ) शरीरस्थ पांच प्राणवायु । [ यथा - प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान 1] - प्रसादः, ( पु० ) विशेष ढंग का मन्दिर जिसमें चार कौनों पर चार कल्लस और लाट या धौरहरा हो । - बंधः, ( पु० ) अर्थदण्ड विशेष जो चोरी गयी या खोयी हुई वस्तु से या उसके मूल्य का पाँचवाँ भाग होता है। बाणः, - वाणः, शरः, ( पु० ) कामदेव । बाहुः, (पु० ) शिव । -भद्र, (वि० ) १ पाँच गुणों वाला | २ पाँच मसाले की चटनी | ३ पाँच शुभ लक्षणों वाला ( घोड़ा ) । ४ दुष्ट | भुज, (वि० ) पाँच भुजा की शक्ल । पच- कुनिया । - भुजः, ( पु० ) पचकोना ।-भूतं, ( न० ) पाँच तत्व /- मकारं, ( न० ) वाम- मार्गियों के मतानुसार मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन । -महापातकम्, (न०) मनुस्मृति के अनुसार ब्रह्महत्या, सुरापान, चोरी, गुरु-स्त्री-गमन और इन पातकों के करने वाले का सहवास; पाँच महापातक माने गये हैं। महायज्ञाः, ( पु० बहु० ) स्मृतियों और गृह्यसूत्रों के अनुसार पाँच कृत्य जिनका नित्य करना गृहस्थ के लिये आवश्यक है । वे पाँच कृत्य ये हैं :- १ अध्यापन – इसे ब्रह्मयज्ञ कहते हैं। सन्ध्या- वंदन इसीके अन्तर्गत है। २- पितृतर्पण - इसे पितृयज्ञ भी कहते हैं। ३ हवन-इसको देवयज्ञ कहते हैं। ४ -- बलिवैश्वदेव -- इसे भूतयज्ञ कहते हैं। ५ - अतिथिपूजन – इसे नृयज्ञ कहते हैं। -भाषक, या भाषिक, (वि०) अर्थदण्ड जिसमें पाँच माशा ( सुवर्य ) अपराधी को देना पड़ता
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