पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/४६४

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पचन्, पञ्चन् ( ४५७ १ समुदाय । ( दक्षिण, गार्हपत्य आहवनीय, सभ्य और आवसथ्य ये यज्ञीय पाँचों अग्नियों के नाम है।) अग्निहोत्री गृहस्थ २ शरीरस्य चश्रग्नि विशेष | ३ इन अग्नियों के सिद्धान्त को जानने वाला 1-अंग, ( वि० ) पाँच अंगों वाला |--- अंगः (०) १ कछवा २ पचकल्याण घोड़ा। अंगी, ( स्त्री० ) घोड़े की लगाम । अंगम्, ( न० ) १ पांच भागों का समुदाय | २ पूजन के पाँच प्रकार पञ्चोपचार | ३ वृक्ष की पाँच वस्तुएँ । [ १ छाल २ पत्ते ३ फूल ४ जड़ ५ फल ] ४ तिथिपत्र । ( जिसमें ये पाँच बातें हों) यथा--- ( १ तिथि २ वार ३ नक्षत्र ४ योग और ५ करण ) -कम (वि० ) पाँच अवयवों वाला |-- अंगुल ( वि० ) [ स्त्री०- अंगुला, अंगुली ] पाँच अँगुल बड़ा । - अंगुलः, (पु० ) रेड़ी का रूख । – प्रजं, प्राजं. ( न० ) वकरे के शरीर की पाँच वस्तुएँ । - अ न्, (न० ) एक कील का नाम जिसे माण्डकर्णी ने बनाया था।- अमृत (वि० ) २ पदार्थों से बना हुआ। अमृतं. (न० ) पाँच अर्थों का समूह । पाँच मीठी वस्तुओं का समुदाय जो देवपूजन में प्रयुक्त होती हैं। [ दुग्धं च शर्करा चैव घृतं, दधि तथा मधु ] - अर्चिस ( 30 ) बुधग्रह । -अवस्थः, ( पु० ) लाश। - अविकं, (न० ) भेड़ के शरीर की पाँच चीज़े ।-प्रशीतिः ( स्त्री० ) ८५ पचासी-ग्रहः, (पु० ) पाँच दिन का काल । -श्रातप, (वि० ) पंचाग्नि सापना | ( चार- और सूर्य ) एक प्रकार का तप ( पु० ) पाँच दिवस का काल । झात्मक, ( वि० ) पांच तत्वों का बना हुआ । ( शरीर जैसे ) - आननः, आस्यः, मुखः, वक्त्रः, ( पु० ) १ शिव । २ शेर ३ सिंहराशि - आननी, ( स्त्री० ) दुर्गा देवी |– आम्नायः ( पु० बहुवचन ) पाँचशास्त्र जो शिवजी के पाँच मुखों से निकले बतलाये जाते हैं । - इन्द्रियं ( न० ) पाँच इन्द्रियों का समुदाय ।-इषुः- बाणः, -शरः, ( पु० ) कामदेव | ( कामदेव के पाँच बाण ये हैं- ग्रहः, ) पचन् पञ्चन् अरविंदमय जयका लोत्पलं च पते पंचवन्यस्य मध्यकाः अन्यच सम्मोहनोन्माद शोषणस्तापमस्तथा । रहम्मश्चति कास्य पाएकीर्तिताः -उष्मन् (पु० बहु० ) शरीरस्य पाँच अग्नि --कपाल (दि० ) पाँच प्यालों में बनाया हुआ या भेंट किया हुआ /- (वि० ) ( जानवरों के ) काम पर पाँच की संख्या दागना । - कर्मन, (न० ) पाँच प्रकार की चिकित्सा । [ १ वमन, २ रेचल, ३ नस्य, ४ अनुवासन् १ निरूह ] - कृत्वस, (व्या० ) पाँचवार । पाँच मरतवा । —कोण (पु० ) पचकौना । - कोलं, (न० ) पाँच जाति का समूह |--कोषाः, ( पु० बहु० ) शरीरस्थ ५ कोप | [ पाँच कोप ये हैं:- १ अन्नमयको २ प्राणमयकोष । ३ मनोमयकोय | ४ विज्ञानमयकोप | १ आनन्द- मयकोष 1] -कांशी ( स्त्री० ) १ पाँच कोश का अन्तर | २ वनारस का नाम - खट्ट - खट्टी, ( स्त्री० ) पाँच खाटों का समुदाय - गवं, (न० ) पाँच गौत्रों का समुदाय । -गव्यं, ( न० ) गौ से उत्पन्न पाँच पदार्थ | [१ दूध, २ वही, ३ घी, ४ मूत्र, ५ गोवर ] -गु ( वि० ) पाँच गौ देकर खरीदा हुआ /- गुण, (वि० ) पाँच गुना :- गुणा: ( पु० ) रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द । -- गुणी (स्त्री० ) ज़मीन /- गुप्तः, ( पु० ) १ कछवा | २ चार्वाकमत ।- चत्वारिंश ( वि० ) पैतालीसवाँ 1-जनः, ( पु० ) १ मनुष्य | मानवजाति २ एक दैत्य, जिसे कृष्ण भगवान ने मारा था । ३ जीवात्मा | ४ पाँच प्रकार के जीव [ अर्थात् १ देववा, २ मानव, ३ गन्धर्व, ४ नाम और ४ पितृ | ] ५ पाँच वर्ष यथा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र औौर अंत्यज ।-- जनः, (पु०) अभिनयकर्त्ता । विदूषक ज्ञानः, ( पु० ) १. बुद्धदेव की उपाधि २ पाशुपत सिद्धान्तों का जानकार पुरुष /-ततं, (न० ) - तक्षी (वि० ) पाँच बदइयों का समूह |-- तत्त्वं, ( न० ) १ पाँच तत्वों का समूह | [पाँचतत्व -१ पृथ्वी, २ जल, ३ तेजस्, ४ वायु और ५ आकाश ] सं०स० कौ० ८ मसखरा ।