पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३७२

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त्रिशत् त्रिशत् (सी० ) तीस | पत्र ( न० ) चन्द्रमा क उदय पर खिलने वाला कमल त्रिशत्कम् ( न० ) तीस का जब त्रिंशतिः ( स्त्री० ) शीस ( ३६५ ) निक ( वि० ) १ तिहरा | तिगुना | २ सीन शत त्रिकम् ( न० ) १ त्रिमूर्ति | २ तिराहा | ३ कुल्हा ४ मुड्ढों के बीच का स्थान | त्रिकुट या तीन मसाले । त्रिका (स्त्री० ) भरहट | कुएँ से पानी निकालने का यंत्र विशेष । त्रितय (वि० ) [स्त्री० --त्रितयी] तीन भागों वाला । विगुना। तिहरा | 1 त्रितयम् ( न० तीन का समूह | त्रिधा (अव्यया० ) तीन प्रकार से या तीन भागों में त्रिस् (अव्यया० ) तिवारा। तीन बार त्रुटू (धा०] परस्मै० ) [ यति, शुदति, ऋठित ] चीरना तोड़ना । बुद्धिः ) (श्री०) 1 फाटना | तोड़ना | फाड़ना । २ छोटा दो हिस्सा भए । ३ क्षण या सय ४ सन्देह संशय । ५ हानि नाश । ६ छोटी इलायची ( का पौधा)। त्रेता (सी०) १ तीन का समूह | २ तीन प्रकार के हव- नाग्नि का समूह । ३ पाँसे में तीन का दाँव फेंकना। चार युगों में से दूसरा थुग श्रेधा (अन्य ) तीन प्रकार से तीन भागों से है (घ० ग्राम० ) [ त्रायते, त्रात, आण ] रक्षा करना | बचाना बैकालिक (वि० ) [बी०- त्रैकातिको] तीन काल से सम्बन्ध रखने वाला। अर्थात् यीते हुए आये आने वाले थौर वर्तमान कालों से सम्बन्धयुक्त। त्रैकाल्यं (न०) तीन काल । भूत, भविष्यद् और वर्त- मान । शिक (वि० ) तिहरा तीन गुना | त्रैमुख्यम् ( न० ) ? तीन गुणों का | २ तिहरापन | ३ सत्व, रजसू और समस् पुरः ( पु० ) १ त्रिपुर प्रदेश २ उस देश का शालक या रहने वाला। त्रैमातुर: ( पु० ) लक्ष्मण का नाम । त्वचा अॅमिक (वि० ) [ स्त्री० नमासिका] सान मास 1 का प्रत्येक तीसरे आस होने या निकलने वाला. वैराशिकं ( म० ) गणित की क्रिया विशेष । त्रैलोक्यं (न० ) तीन लोकों का समूह | दैशिक (वि० ) [ स्त्री० -त्रैवशिकी ] प्रथम तीन बहों से सम्बन्ध रखने वाला। क्रम ( वि० ) विष्णु या वामनावतार का । त्रैवियं (०) १ तीन वेद | २ तीन वेदों का अध्ययन | ३ तीन विज्ञान | त्रैवियः (न० ) तीनो वेदों का ज्ञाता ब्राहाण विष त्रैविध्य: } ( S० ) देवता । त्रैशङ्कः (5०) शिहु के पुत्र राजा हरिश्चन्द्र को उपाधि | नोटकं ( ० ) नाटक विशेष जैसे कालिदास की विक्रमोवंशी --हस्तः, (पु० ) पक्षी नोट: (०) श्रोत्रं (न० ) अश। चाबुक। त्वक्ष ( धा० पर० ) [ त्वक्षति, त्वष्ट ] वराशना । कतरना छीलना | स्वंकारः । त्वङ्कार: f (पु० ) शृकार । अप्रतिष्ठाकारक सम्बोधन । त्वंग ) ( धा० पर० ) [व्यंगति] १ जाना हिलना त्व) २ कूदना | कटपर दौड़ना। ३ कौंपना । त्वच् ( स्त्री० ) 1 चमड़ा ( मनुष्य, सर्प धादि का ) । २चर्म (गाय, हिरन आदि का) । ३ छाल गूदा | ४ कोई चीज़ जो ढकने वाली हो । ५ स्पर्श ज्ञान। -रः (पु०) रोमाज | रोंगटे खड़े होना। ---- इन्द्रियम (२०) स्पर्शेन्द्रिय /- कराहुरः (पु० ) फोड़र धाव नासूर -गन्धः, ( पु० ) नारंगी । शन्तरा /- वेदः, ( पु० ) धर्म का धाव खरौच 1-अं, (न० ) १ खून | लोहू | २ रोम | लोभ 1- तरङ्गकः ( पु० ) सुरी। सकुदम, (न० ) कवच (-दोषः, (पु०) चर्मरोग को पारुष्यं ( न० ) चर्म का रूखापन पुष्पः, (पु० ) रोमात्र /~-सारा, ( पु० ) [ त्यविसारः ] बाँस -सुगन्धः ( पु० ) नारंगी । त्वचा ( स्त्री०) देखो त्वच !