पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३१३

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( ३०६ ) कलाबाजी } (स्रो० ) राजहंस चकाङ्की ( घूमने वाला।-चूडामणिः (g०) मुकुटमणि | | चक्रकः ( पु० ) तर्क विशेष -जीवकः, - जीविन, ( पु० ) कुम्हार /- तीर्थ, ( न० ) नैमिवारण्य का तीर्थ विशेष :- धरः, ( पु० ) १ विष्णु का नाम । २ राजा। सूबेदार | प्रान्त का शासक | ३ देहाती नट । जादूगर। मदारी।-—धारा, (स्त्री०) पहिये की परिधि या उसका घेरा । – नाभिः, ( पु० ) पहिये की नाह। - नामन् (पु० ) १ चक्रशक । २ लोहभस्म !- नायकः, (पु०) १ सैनिक टोली का नायक | ३ सुगन्ध द्रव्य विशेष - नेमिः, एहिये की परिधि या उसका घेरा । पाणिः, ( पु० ) विष्णु भगवान |--- पादः -पादक, ( पु० ) १ गाड़ी | २ थी। -पालः, (पु० ) सूबेदार या प्रान्त का शासक २ एक १ सैनिक विभाग का अधिकारी । ३ आकाशमण्डल || चक्रीवतः } (पु० ) गधा । रासभ । खर । बन्धु, बान्धवः, (पु० ) सूर्य 1- बालः, - वालः, बाडः, वाडः, - बालं, वालं, - बार्ड, चाडं, (न०) १ मण्डल वृत्त । समुदाय । समूह | ३ आकाश भण्डल । ( पु०) १ पौराणिक पर्वत माला जो पृथिवी की परिधि को दीवाल की तरह घेरे हुए हैं और जो प्रकाश और अन्धकार की सीमा समझी जाती है | २ चक्रवाक | - भृत्, ( पु० ) १ चक्रधारी । २ विष्णु। - भेदिनी, (स्त्री०) रात । निशा । भ्रमः, -भ्रमिः, (स्त्री०) चक्की (आटा पीसने की ) । - मराड लिज् ( 5०) सर्प विशेष - सुखः, (पु० ) यानम्, (न० ) गाड़ी । -रद, ( पु० ) शूकर । - वर्तिन, (पु० ) आसमुद्रक्षितीश | सम्राट | -चाकः, ( पु० ) चकवा चकवी - वाढः, ( पु० ) १ सीमा । सरहद्द | २ डीवट | पतील- सोत । ३ किसी कार्य में व्याप्ति । - वातः, (पु०) तूफान । बंबदर | आँधी । --वृद्धि ( स्त्री० ) सूद दर सूदच्यूहः, ( पु० ) मण्डलाकार सैनिक संस्थापना । - संज्ञं, (न० ) टीन /- संज्ञः, ( पु० ) चक्रवाक । —साहयः, ( पु० ) चक्रवाक |~-हस्तः ( पु० ) विष्णु । चक्रः

(पु०) १ चक्रवाक | २ समुदाय । समूह | दल । |

-क (वि० ) चन्द्राकार | गोल । • चक्रवत् (वि०:) १ पहियादार या जिसमें पहिये लगे हों । २ गोल । ( पु० ) १ तेली । २ सम्राट | ३ विष्णु का नाम । चक्रिका (स्त्री० ) १ ढेर | दख । टोली | २ धोखा | दगाबाज़ी | ३ घुटना | सकिन् (पु०) १ विष्णु । २ सन्नाटू । कुम्हार । ३ तेली । ४ सूबेदार । प्रान्त का शासक ६ गधा । ७ चक्रवाक |८ मुखबिर | सूचना देने वाला | 8 सर्प | १० काक | ११ मदारी | नट | चक्रिय (वि०) यात्रा करने वाला। गाड़ी में बैठने वाला। चक्रीवत् । चक्षू ( घा० आत्म० ) [ चष्टे ] १ देखना | ताकना । पहचानना । २ बोलना कहना बतलाना । चक्षुस् ( पु० ) १ शिक्षक दीक्षागुरु | अध्यात्म विद्या सम्बन्धी विद्या पढ़ाने वाला | २ देवगुरु बृहस्पति । चक्षुष्य ( वि० ) १ सुन्दर खूबसूरत मनोहर २ आँखों के लिये भला । चक्षुण्या ( स्त्री० ) सुन्दरी स्त्री । चतुस् ( म० ) १ नेत्र । आँखे । २ दृष्टि । दृकूशक्ति । देखने की शक्ति। -गोचर, (वि० ) दिखलाई पढ़ने वाला। - दानं, ( न० ) मूर्ति प्रतिष्ठा के अन्तर्गत नेत्रोन्मीलन कृत्य । -पथः, (पु०) दृष्टि की पहुँच । अन्तरिच - मलं, ( न० ) कीचड़ | आँख का मैल | - रागः, (चरागः) (पु०) आँखों की सुख । आँखभिड़ौल 1- रोगः, ( = चनुरोगः ) ( पु० ) नेत्ररोग विशेष |-- विषयः, ( पु० ) दृष्टिगोचरत्व | २ चिन्हानी | देखने से प्राप्त हुआ ज्ञान अथवा देखने से प्राप्त होने वाला ज्ञान | ३ कोई भी पदार्थ जो दिख लाई पड़े । [ अच्छे या स्वच्छ नेत्रों वाला। चक्षुष्मत् ( वि० ) १ देखने की शक्ति से सम्पन्न । २ चंकुरा, चङ्करः (पु० ) ) चंकुणः, चङ्कुणः(पु०)} १ ३ कोई भी पहियादार वृष । पेडू । २ गाढ़ी । सवारी ।