( रोहिन (वि० ) [ स्त्री० -गेहिनी, ] देखो गृहिन् । गेहिनी ( स्त्री० ) पत्नी | गृहिणी । घर की सलकिन । गै (धा० पर ) [ गायति, -गीत, ] १ गाना | गीत गाना। २ गाने के स्वर में पढ़ना या बोलना । ३ वर्णन करना। निरूपण करना ४ पद्य द्वारा वर्णन करना या कविता बनाकर प्रसिद्ध करना । गैर (वि० ) [ स्त्री० – गैरी ] पहाड़ पर उत्पन्न । गैरिक ( वि० ) [ स्त्री० --चौरिकी ] पहाड़ पर उत्पन्न । गैरिकं ( न० ) } गेरू । ( न० ) सुवर्ण । सोना | गैरिकः ( पु० ) ) गैरेयं ( न० ) राल | नफ़सा | गो ( पु० स्त्री० ) [ कर्ता-गौः ] १ पशु | मवेशी ( बहुवचन में ) । २ गैौ से उत्पन्न कोई भी वस्तु जैसे दूध, चमड़ा आदि । ३ नक्षत्र | ४ श्राकाश । १ इन्द्र का वज्र | ६ किरण | ७ हीरा | ८ स्वर्ग ● सीर । गो ( स्त्री० ) १ गौ | २ पृथिवी | ३ वाणी | ४ सर- स्वती देवी । ५ माता ६ दिशा । ७ जल । ८ नेत्र | गो ( पु० ) १ साँड | बैल | २ रोम | लोम | ३ इन्द्रिय | ४ वृषराशि | ५ सूर्य | ६ नौ की संख्या | ७ चन्द्रमा ८ घोड़ा-कराटकः, (पु० ) - कण्टकम्, ( न० ) बैलों से खूंदा हुआ मार्ग या स्थान जो दूसरों के जाने योग्य न रह गया हो । २ गाय का खुर। ३ गौ के खुर की नोंक ।-कर्णी, ( ५० ) १ गाय का कान | २ खच्चर | ३ साँप | ४ बालिश्त । बित्ता । माप विशेष अवध प्रान्त का तीर्थ विशेष जो गोकरननाथ के नाम से प्रसिद्ध है। ६ बाणविशेष – किराठा, किराटिका, ( स्त्री० ) मैना पक्षी । - किलः, - कीलः, (५०) १ हल | २ खल्ल । - फुलं, (न०) १गौ की रौहर। गौओं का समूह | २ गोशाला | ३ गोकुल गाँव जहाँ श्रीकृष्ण पाले पोसे गये थे। कुलिक, ( वि० ) १ दलदल में फंसी गैर को निकालने में सहायता न देने वाला । २ ऐचाताना | भेड़ा । –कृतं, ( न० ) गोबर | तोरं, ( न० ) गाय का दूध। - गृष्टिः, ( स्त्री० ) एक बार की व्यायी गाय । - गोयुगं, ( न० ) बैलों की २२४ ) गो एक जोड़ी 1-गोष्ठं, (न०) गोशाला । -प्रन्थिः, ( स्त्री० ) १ कंडे | उपरी । २ गोशाला /- ग्रहः ( पु० ) मवेशी पकड़ना । -ग्रासः, (g०) भोजन करने के पूर्व निकाला हुआ हिस्सा । - घृतं, ( न० ) वृष्टि का जल | २ धी। गौ का घी । – चन्दनम्. ( न० ) एक प्रकार का चन्दन । –घर, (वि०) १ गौ का चरा हुआ। २ पृथिवी पर घूमने वाला | ३ लक्ष्य के भीतर 1 चरः, ( पु० ) १ गोचरभूमि । चरागाह | २ जिला | प्रान्त | विभाग | प्रदेश | ३ इन्द्रियों की पहुँच के भीतर । इन्द्रियों के विषय | ४ पहुँच | लक्ष्य के भीतर ५ पकड़ शक्ति प्रभाव कायु । ६ दिनमण्डल । दिगन्तवृत्त । आकाशमण्डल । - चर्मन, ( न० ) १ गाय का चमड़ा । २ सतह नापने का माप विशेष, जिसकी परिभाषा वशिष्ठ जी ने इस प्रकार दी है- 1 दशरस्तेन वंशेन दशवंशान् समन्ततः पञ्च चाभ्यधिकान् ददयादेतद्गोचर्म चोध्यते ॥ चर्मवसनः, ( पु० ) शिवजी । चारकः, ( पु० ) ग्वाला । अहीर ।—जरः, ( पु० ) बूढ़ा साँद या बैल 1-जलं, ( पु० ) गोमूत्र | - जागरिकं, (न० ) श्रानन्द । उल्लास | उछाह मङ्गल । तल्लजः, ( पु० ) उत्तम सौंद या गाय । - तीर्थ, (न० ) गोशाला । —त्रं, (न०) १ गोशाला | २ वंश । कुल | ३ नाम | संज्ञा । ४ समूह | ५ वृद्धि | ६ वन | ७ खेत ८ मार्ग १ सम्पत्ति । १० । छाता | ११ भविष्यज्ञान | १२ श्रेणी । जाति वर्ग । –त्रः, ( पु० ) पर्वत । पहाड़ । —त्रकीला, (स्त्री० ) पृथिवी । -नज, (वि० ) एफ ही कुल या वंश में उत्पन्न । -त्रपटः, ( पु० ) वंशावली । - त्रमिदः, ( पु० ) पहाड़ों को फोड़ने वाला । इन्द्र | - त्रस्खलनम्, ( न० ) - त्रस्खलितम्. ( म० ) गलत नाम से पुकारना । - त्रा, (स्त्री०) १ गौओं की हेड़। २ पृथिवी । --दन्तम्, (न० ) हरताल । -दा, (स्त्री०) गोदावरी नदी । - दानम्, (न०) बाल काटने का दान। यथा रघुवंशे-“गोदान विवेरनन्तरम् ।" - दारणं, ( न० ) १ हल | २
पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३०१
दिखावट