पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३०

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अत्युक्तिः श्रदत्त अत्युक्तिः (स्त्री० ) बहुत बढ़ा कर कहा हुआ कथन । बढ़ा चढ़ा कर कहने की शैली । बढ़ावा । सुवालिग़ा | अपिच | पुनः। -- किं, और क्या ? हाँ। ठीक यही । ठोक ऐसा हो । निस्सन्देह |–च पिच । किञ्च । इसी प्रकार | ऐसे ही वाया | २ वरं । अधिकतर था क्यों या कदाचित् । प्रथम कथन का संशोधन करते हुए। अत्युपध (वि०) विश्वस्त । परीक्षित | प्रत्यूहः ( पु० ) १ गम्भीर विचार या ध्यान । ठीक अथवा सच्चा तर्कवितर्क । २ अलकुक्कुट | एक | अथर्वन् ( पु० ) १ यज्ञकर्त्ता विशेष, जो अग्नि और प्रकार का जलपक्षी । कालकण्ठ । सोम का पूजन करता है | २ ब्राह्मण । (बहुवचन में । ) अथर्वन ऋषि के सन्तान । अथर्ववेद की ऋचाएं। अधिकरणार्थक धन्यय यहाँ। इसमें अन्तरे ( क्रि० वि० ) इस बीच में | इस असें में। -भवत् ( पु० ) - भवान् । श्लाध्य | पूज्य प्रशंसा करने योग्य अंगरेज़ी के Your honour अथर्वा, अथर्व ( पु० न० ) अथर्ववेद । - निधिः- विदु (पु० ) अथर्ववेद पढ़ने का पात्र या अधि कारी अथर्ववेद का ज्ञाता । या His Honour के समान इसी प्रकार अथर्वणिः ( पु० ) अथर्ववेद में निष्णात ब्राह्मण । Your Ladyship or Her Ladyship के लिये “ अनभवती" का व्यवहार होता है। अथवा अथर्ववेद में वर्णित कार्यों के कराने में निपुण । यथा । अथर्वा ( न० ) अथर्ववेद की अनुष्टानपद्धति | अथवा (अव्यया० ) पक्षान्तर बोधक अन्यय या वा किंवा । (१) " छन्नभवान् मकृतिमापनः " ( २५ -शकुन्तला (२) " वृक्षसेचमादेव परिश्रान्तामत्रभवतीं शक्षये -शकुन्तला । म अत्रत्य (वि० ) १ यहाँ सम्बन्धी । इस स्थल से | २ यहाँ उत्पन्न हुआ । यहाँ प्राप्त । इस स्थान का । स्थानीय । त्र (वि० ) निर्लज्ज | दुरशील | प्रगल्भ उद्धृत । अत्रः ( पु० ) एक ऋषि का नाम।–जः जातः द्वग्ज; नेत्रप्रसूतः प्रभवः, - भवः ( पु० ) चन्द्रमा | अयमयनसमुत्थं ज्योतिरप्रेरियोः ।" रघुवंश सर्ग २ लोः ७५ अथ (अन्यया० ) मङ्गल आरम्भ । अधिकार | २ सदनन्तर। पीछे से ३ यदि कल्पना करिये। यदि अब । ऐसी दशा में किन्तु यदि । ४ और ऐसा भी। इसी प्रकार जिस प्रकार २ इसका प्रयोग किसी विषय को जिज्ञासा करने में तथा कोई प्रश्न आरम्भ करने में होता है । ६ सम्पूर्णता । नितान्तता । ७ सन्देह संशय यथा “शब्दों नित्योऽथानित्यः । ” अपि, अपर किञ्च । ) थो (अव्यया० ) अथ | अदु (धा०प० ) [ अति, अन्न-जग्ध ] १ खाना । भजण करना । २ नष्ट करना । यद् यद् (वि०) भोजन करते हुए। भक्षण करते हुए । अष्ट्र (वि० ) दन्तरहित । अष्ट्रः (पु० ) सर्प जिसका विषदन्त उखाड़ लिया गया हो। प्रदक्षिणा (वि० ) १ बाँया | २ वह कर्म जिसमें कर्म कराने वाले को दक्षिणा न मिले। विना दक्षिणा का । ३ सादा । निर्बल मन का । निर्वाध | मूढ़ । ४ सौष्टवशून्य । नैपुण्यरहित । चातुर्यविवर्जित । भद्दा । ५ प्रतिकूल । अंदण्ड्य ( वि० ) १ दण्ड देने के अयोग्य २ दण्ड से मुक्त | सज़ा से बरी । प्रदत् ( वि० ) दन्तरहित विना दाँतों का। अदत्त ( वि० ) १ विना दिया हुआ । २ अन्याय पूर्वक या अनुचित रीति से दिया हुआ | ३ विवाह में न दियां हुआ ! सं० श० कौ० ४