कतिविध कतिविध (वि० ) कितने प्रकार के। कतिशस् ( अव्यया० ) एक दफे में कितने । कत्थू ( धा० आत्म० ) [ करते कथित ] डींगे हाँकना शेखी बघारना | २ प्रशंसा करना । प्रसिद्ध करना। ३ गाली देना । बखान करना। डींगे हाँकना । कत्थनम् (२०) कत्थना (स्त्री०) कत्सवरं ( म० ) कंधा । कथ् ( घा० उभय० ) [ कथयति, कथित } १ कहना | बतलाना। २ बर्णन करना। ३ वार्तालाप करना । ४ निर्देश करना। खोलना दिखला देना । १ निरूपण करना|६ सूचना देना। खबर देना । शिकायत करना | ३ ! कथक ( वि० ) कहने वाला। निरूपण करने वाला कथकः ( पु० ) १ किसी अभिनय का प्रधान पात्र | २ वादी ३ किस्सा कहने वाला कथनम् ( न० ) वर्णन। निरूपण | विवरण | कथम् ( अभ्यमा० ) १ कैसे किस प्रकार किस तरह से कहाँ से । २ यह आश्चर्य व्यञ्जक भी है कधिकः ( पु०) जिज्ञासु । खोजी (०) किस रीति से ( वि० ) किस नाव का भूत (बि० ) किस प्रकार का कैसा-रूप, (वि० ) किस सूरत कार्य, 1 कैसे प्रमाण, शहु का | कथंता कथन्ता ( २०५ ) } I } (स्त्री०) किस प्रकार का । किस ढंग का : कथा ( स्त्री० ) १ कहानी किस्सा २ कल्पित कहानी ३ वृत्तान्त वर्णन 8 वार्तालाप | aar- पकथन | २ आख्यायिका के ढंग का गद्यमय निबन्ध। - अनुरागः, (पु०) वार्तालाप करने में हर्पित होने वाला पुरुष ।-अन्तरम् ( न० ) १ बातचीत के सिलसिले में २ दूसरी कहानी । -भारम्भः ( पु० ) कहानी का प्रारम्भ उदयः ( पु० ) कहानी का प्रारम्भ ~~-उद्धातः ( पु० ) पाँच प्रकार की प्रस्तावनाओं में से दूसरे प्रकार की प्रस्तावना २ किसी कहानी के वर्णन का आरम्भ-उपाख्यानम्. ( न० ) वर्णन। निरूपण। कुलं, (न०) कल्पित कहानी कढ़ का रूप रंग २ मिथ्यावर्शन -नायकः, पुरुषः, ( पु० ) किसी कहानी का मुख्य -पी. (न० ) किसी कहानी का आरम्भिक भाग/-प्रवन्धः ( पु० ) कहानी | किस्सा प्रसङ्गः ( पु० ) १ वार्तालाप | बातचीत का सिलसिला २ विषवैद्य-प्राणः ( पु० ) नाटक का पान-सुखं, (न० ) कथापीठ | किसी कहानी का थारम्भिक अंश ।-योगः (50) वार्तालाप का सिलसिला:- विपर्यासः (पु० ) किसी कहानी का बदला हुआ ढंग -शेष- प्रवशेष (वि०) वह पुरुष जिसका केवल वृत्तान्त यच रहे अर्थात् सृत सुतक मरा हुआ - शेषः -अवशेषः, (पु० ) कहानी का शेष - - अंश या - यचा हुआ भाग | कथानकम् ( न० ) छोटी कहानी जैसे नेताल- पीसी " कथित च० कृ० ) १ का हुआ। वर्णित | निरू पित २ वाथ्य पदं ( न० ) पुनरुक्ति | [ यह निबन्ध रचना में रचना सम्बन्धी दोष माना गया है ] वाक्या से सम्बन्ध रखने वाला वाक्य सम्बन्धी । कद् ( धा० आत्म० ) [कद्यते] धवड़ा जाना । मन का चबल होना (आत्म० [ कढ़ते ] १ रोना | आँसू बहाना। २ दुःखी होना। ३ बुलावा पुका- रना। 8 मार डालना या चोटिल करना। कट् ( धन्यवा० ) यह 'कु' का परियायवाची है और बुराई, स्वल्पता, हास, अनुपयोगिता, त्रुटिपूर्णता आदि के भावों को प्रकट करता है। अक्षरं ( न० ) बुरे अक्षर | बुरालेख |-अभिः ( पु० ) थोड़ी धाग |-अध्यन् ( पु० ) बुरा मार्ग /- अनं ( न० ) बुरा भोजन । थपत्यं ( न० ) बुरा वालक/अभ्यासः (पु० ) बुरी आदत या बान। फुटेव!-~-अर्थ (वि०) निरर्थक | अर-अर्थमा (खी०) पीड़ा | अत्याचार | -यति (क्रि०) १ तिरस्कार करना | तुच्छ समझना २ पीषित करना अत्याचार करना । -- अर्थित (वि०) १ तिरस्कृत घुति तुच्छी . कृत | २ अत्याचार पीड़ित | खिजाया हुआ।
पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/२१२
दिखावट