उम् उपोषणम् ( न० ) उपवास | बांका। उपोषितम् ) कड़ाका । उतिः (स्त्री० ) वीज योना। उज्ज् (धा० पर० ) [ उज्जति, उब्जित ] १ दयाना। वश में करना । २ सीधा करना । ( १८२ ) उभ् ) (धा० पर०) [ उभति, उंभति, उन्नाति, उंभू ) उंभित ] 1 कैद करना। २दो को मिलाना । ३ परिपूर्ण करना | ४ ढांकना। उभ (सर्वनाम ) (वि० ) दोनों उभय (सर्वनाम ) ( दि० ) दोनों चर ( वि० ) जल घल में रहने वाला । - विद्या, ( श्री० ) आध्यात्मिक ज्ञान और लौकिक ज्ञान । -वेतन, ( वि० ) दोनों ओर से वेतन पाने वाला दा वाज-व्यञ्जन, (वि० ) स्त्री और पुरुष दोनों के चिन्ह रखने वाला। संभवः, सम्भवः, ( पु०) दुविधा । भ्रम । उभयतः (अव्यया०) १ दोनों ओर से दोनों ओर। २ दोनों दशाओं में ३ दोनों प्रकार से /- दत, दन्त, ( वि० ) दाँतों की दुहरी पंक्तियों बाखा~मुख, (वि०) दोनों ओर देखने वाला। दुमुँहा ।मुम्बी (स्त्री० ) गौ | उभयत्र (थव्यया० ) १ दोनों जगह | २ दोनों तरफ ३ दोनो दशाओं में। [ दशाओं में। उभयथा (०) १ दोनों प्रकार से २ दोनों उभयद्युस ) (अव्यया०) १ दोनों दिवस । २ दोनों उभयेस् ) पिछले दिनों । - उभ् (अव्यया० ) क्रोध, प्रश्न, प्रतिज्ञा, स्वीकारोक्ति, सच्चाई व्पक्षक अव्यय विशेष | उमा (श्री०) १ शिव जी की पत्नी, जो पुत्री थी । २ कान्ति कीर्ति । ४ निस्तब्धता । हल्दी उंबर उम्बर: उंबुर: उम्बुरा हिमालय की सौन्दर्य ३ यश | शान्ति श्रात्रि | ६ सन गुरुः (पु० ) अनकः, ( पु० ) हिमालय पर्वत । -पतिः, (पु० ) शिव जी । सुतः, ( पु० ) कार्तिकेय या गणेश जी । ( पु० ) चौखट की ऊपर वाली लकड़ी। उरः ( पु० ) भेद । उरगः [ स्त्री० - उरगी ] १ साँप : सर्प | २ नाग । ३ सीसा। -अशनः, शत्रुः, (पु० ) १ सौंप का शत्रु २ गद ३ मोर ४ न्योला । -इन्द्रः ( पु० ) -राजः, (पु० ) वालुकी या शेष जी का नाम। - प्रतिसर, (वि०) परिणया- मुलीयक के लिये सर्प रखने वाला।~~भूपणः, पु० ) शिव जी का नाम -सारचन्दनः (१०) सारचन्दनम्, ( न० ) एक प्रकार के चन्दन का काष्ट। स्थानं, (१०) पासाल, जहाँ सर्प रहते हैं। उरंगः उरङ्गः उरंगमः - ( पु० ) सर्प | सौंप | उरङ्गमः उरगा ( श्री० ) एक नगरी का नाम । उरणः (पु० ) [ स्त्री० --उरणी, ] 1 मेदा | मेष | मेड़ | २ एक दैत्य, जिसे इन्द्र ने मारा था। उरणकः ( पु० ) १ मेष | २ बादल | उरणी (स्त्री० ) भेड़ी | मेषी । उरभ्रः (पु० ) भेड़ | मेष | उररी (धव्यया०) स्वीकारोकि प्रवेश और सम्मति व्यञ्जक अव्यय । उरस (पु० ) ( उरः ) छाती। वक्षस्थल । -हृतं, ( न०) छाती का घाव । ---ग्रहः, -घातः, (पु०) J - फेफड़े का रोग चदः, आणं, (न० ) छाती के रक्षा के लिये वर्म विशेष -जः, -भू.. उरसिजः, ~~उरसिरुहः, (पु०) क्षियों की छाती। -सूत्रिका, (श्री०) मोठी का हार जो वक्षस्थल पर पढ़ा हो। स्थलं, (न० ) छाती | वक्षस्थल उरस्य ( वि० ) १ औौरस सन्तान (पुत्र या कन्या ) | २ वचस्थल का | ३ सर्वोकृष्ट उरस्य: ( पु० ) पुत्र | उरस्वत् उरसिल } ( वि० ) चौड़ी छाती वाला। उरी (अव्यया० ) देखो उररी । उरु ( वि० ) [ स्त्री० उह और उसवीं 1 थोंदा लंबा चौड़ा प्रशस्त २ यदा लंबा अधिक । अस्यधिक । विपुख १४ बहुमूल्यवान 1
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