पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/१७

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अक्य य, अन्य (वि०) दागने योग्य यः (पु०) एक प्रकार का ढोल या मृदङ्ग । ( १२ ) न्, अ ( धा० परस्मै० ) [ ] , १ रेंगनो । घुटनों के बल चलना । २ चिपटना | ३ रोकना | ढक्का देना । - [, [अङ्ग (घा० परस्मै० ) [ अंगति । अङ्गति । आनंग - आनङ्ग | अंगितु - अङ्गतु गि अ]ि १ जाना । टहलना २ चारों ओर घूमना फिरना १३ चिन्हित करना । दागना । ४ गिनना । -- , अङ्ग ( अन्यथा० ) सम्बोधनवाची धन्यय विशेष जिसका अर्थ है-"बहुत अच्छा", "श्रीमन् बहुत ठीक", "अवश्य”, “सस्य है", "अङ्गीकार " किन्तु जब इसके पूर्व "किं" जुड़ता है, सब इसका अर्थ होता है ---"कितना कम" ? या “कितना अधिक" यथाः- "तृपोन कार्य भवतीश्वराणां किनङ्ग वाग्दस्तधता गरेण ।” -पञ्चतंत्र । संस्कृत कोशकारों ने “श्रङ्गः" शब्द के निम्नाङ्कित अर्थ बतलाये हैं- - "सिमे पुनरर्थे च सङ्गभाशयथोस्तथा । हर्षे सम्बोपने चैव यन्दः मयुज्यते ।" अर्थात् शीघ्रता | पुनः । सङ्गम असूया। हर्ष । सम्बोधन के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग होता है। -- (अ) ( म०) १ काय | गात्र | अवयव | २ प्रतीक | ३ उपाय | ४ मन । ५ छः की संख्या का बाचक । -गः (अङ्गः) (पु०) एक देश विशेष तथा वहाँ के निवासियों का नाम यह देश विहार के भागलपुर नगर के आसपास कहीं पर है। इसकी सीमा का परिचय संस्कृतसाहित्य में इस प्रकार दिया हुआ है:--- - वैद्यनार्थं समारम्य भुवनेशा शिवे तावदङ्गाभिषो देशो यात्रायां नदि दुष्पति ॥” अर्थात् वैद्यनाथ देवघर से लेकर उड़ीसास्थित भुवनेश्वर तक का देश अदेश कहलाता है। इस देश में इतने बीच में ज्ञान का निषेध नहीं है अग का जो सम्बन्ध शरीर के साथ होता है, वह अ भाव कहलाता है। गायमुख्य भाव | उपकार्योपकारक भाव । –अधीपः अधीशः (पु०) श्रङ्गदेश का राजा या अधीश्वर । -ग्रह (पु०) अकड़बाई । शरीर की पीड़ा। अंगों का अकड़ जाना। -जे-जात ( वि० ) १ शरीर से उत्पन्न या शरीर पर उत्पन्न | २ सुन्दर । विभूषित –जः, अनुस् ( पु० ) १ पुत्र बेटा २ शरीर के लोम । ( न० ) ३ प्रेम । कामदेव | ४ नशे का व्यसन । नशा । मद्यपान ।५ रोगविशेष | व्याधि | जा (स्त्री०) पुत्री | वेटी 1-जं ( न० ) रक्त । खून । लेहु द्वीपः ( पु० ) छः द्वीपों में से एक व्यासः ( पु० ) उपयुक्त मंत्रोच्चारण पूर्वक हाथ से शरीर के भिन्न भिन्न अङ्गों का स्पर्श - पालिः ( स्त्री० ) आलिङ्गन - पालिका ( देखापाल ) | --- प्रत्यङ्गम् ( न० ) शरीर के छोटे बड़े सब अङ्ग-भूः ( पु० ) १ पुत्र | २ कामदेव । -भङ्गः ( पु०) १ किसी शरीरावयव का नाश | २ लकवा का रोग | ३ ऐवाई – मंत्रः (पु०) मंत्र विशेष | -मईः (५०) शरीर दबानेवाला । २ शरीर दवाने की क्रिया | मर्दिन - भी इसी अर्थ में व्यवहृत होते हैं। - अर्थः (पु०) गठिया रोग । -यज्ञः-यागः (पु०) किसी मुख्य यज्ञ के अन्तर्गत कोई गौण यज्ञीय कर्म विशेष - रक्षकः ( पु०) शरीर की रक्षा करने वाला अँगरेज़ी भाषा में " बाडीगार्ड "अङ्गरक्षक ही का परियाय- चाची शब्द है । -रक्षणी १ अंगरखी | अंगा | २ टरच्छद । ३ कवच | चर्म । - रक्षण (न०) किसी व्यक्ति का रक्षण। --रागः ( पु० ) चन्दन श्रादि लेप । २ उबटन ३ उबटन लगाने की क्रिया । — विकल (वि० ) १ अङ्गभङ्ग | २ लकवा मारा हुआ - विकृतिः ( स्त्री० ) सूरत बदल जाना। सहसा सर्वाङ्गीन पतन। जीवन शक्ति का निमज्जन । अवसाद । - विकारः ( पु० ) शारी- रिक दोष या त्रुटि। -विज़ेपः ( पु० ) शारीरिक अवयव का सकोड़ना फैलाना या उनको हिलाना दुजाना श्रयों का - - वाजी विद्या A -