( इक्यावन ) कडुआ बूट इसलिये पी जाना पड़ा कि इसके बिना भारत के स्वाधीन होने की कोई आशा दिखलाई नहीं देती थी। फिर भी एक आशा बनी हुई थी कि देर सवेर भारत का एकीकरण पुनः होगा। इसी आशय को लेकर भरत पिशरौटी ने एकभारतम् की रचना की। (आ) भारत की जीर्ण शीर्ण टूटी भूटी दशा के सुधार में भारत के सपूत पूर्ण संलग्नता के साथ प्रवृत्त हो गये और भारत सर्वीण विकास करने लगा। सर्वाधिक ध्यान बिजली और पानी पर दिया गया। जो नदियां प्रवाहित होती हुई अपना जल व्यर्थ ही समुद्र के सुपुर्द कर देती हैं उन्हें बांध लिया गया और उनसे बिजली के साथ पानी की आवश्यकता की भी पूर्ति की गई। इस आशय को लेकर यतीन्द्र विमल चौधरी ने 'महिमापयभारतम्' शीर्षक नाटक की रचना की जिसमें वैदिक, पौराणिक, इस्लामी भारत की वर्तमान भारत से तुलना करते हुये नवनिर्माण पर प्रकाश डाला। दामोदर बांध,माइथन बांध, भाखरा नंगल, चंबल, नागार्जुनसागर, मुचुकुन्दयोजना, मत्स्यपालन आदि अनेक योजनाओं पर प्रकाश डाला गया है । (३) स्वतन्त्र भारत में काश्मीर समस्या सर्वाधिक उलझन लिये हुये सामने आई । अंग्रेजों ने कूट नीति से भारत के दो नहीं सैकड़ों टुकड़े कर दिये थे। सभी रियासतों को स्वतन्त्र कर दिया था और उन्हें भारत या पाकिस्तान किसी भी देश में मिलने या स्वतन्त्र रंहने का अधिकार दे दिया था। भारत ने निपुणता के साथ बिना खून खराबे के सैकड़ों रियासतें मिला लीं । दोही चार शेष रह गई थी जिनमें कश्मीर भी एक थी। यह मुस्लिम रियासत थी किन्तु इसका राजा हरिसिंह हिन्दू था। वह राज्य को स्वतन्त्र रखकर एक सम्राट बने रहने का स्वप्न देख रहा था। अतः उसने पाकिस्तान और हिन्दुस्तान दोनों से अपनी स्वतन्त्रता स्वीकार करने की प्रार्थना की। किन्तु पाकिस्तान ने वलात् हथियाने का प्रयन किया। उस समय परिस्थिति ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि हरिसिंह को भारत में विलय करने के लिये वाध्य होना पड़ा। पाकिस्तान सैनिक शक्ति से वलात् अधिकार करने की चेष्टा कर ही रहा था। मामला राष्ट्र संघ में भेजना पड़ा। सुरक्षा परिषद् की ओर से ग्राहम समझौता कराने भारत आये और सारी स्थिति का अध्ययन कर समझौते का एक फार्सेला तैयार किया जिसे भारत और पाकिस्तान दोनों ने स्वीकार किया। उसके अनुसार सर्वप्रथम पाकिस्तान को वह क्षेत्र खाली करना था जिस पर उसने अनुचित अधिकार किया था। पाकिस्तान आज तक उस पहली शर्त को ही नहीं निभा सका। काश्मीर का यह झगड़ा अब तक भारत और पाकिस्तान दोनों का सिरदर्द बना हुआ है। इस बीच श्यामाप्रसाद मुखर्जी की घटना सामने आई जो शेख अब्दुल्ला पर विश्वास नहीं करते थे। काश्मीर की घटना को लेकर नीपजे भीम भट्ट ने 'काश्मीरसाधनसमुद्यम' नाटक की रचना की। इसमें समझौते के लिये प्राहम के आने, नेहरु शेख अब्दुल्ला से बातचीत अन्त में निर्णय, श्यामाप्रसाद मुखर्जी का शेख अब्दुल्ला पर अविश्वास, हरिसिंह के स्थान पर कर्णसिंह की राज्यप्रमुख पद पर नियुक्ति इत्यादि तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है।
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