पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/५५

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( छयालीस ) । प्राप्त कर लेती है। (ऊ) लीलाराव दयाल की रचना गणेश चतुर्थी में अन्धविश्वासों की हंसी उड़ाई गई है (ए) दहेज के अभिशाप पर कपिल देव द्विवेदी ने ‘परिवर्तनम्' शीर्षक नाटक लिखा है। कन्या का पिता पुत्री की शादी के लिये मकान इत्यादि बेच देता है और स्वयं आजीविका के लिये बम्बई चला जाता है। घर में निर्वाह एक कुओं और सीढी के बल पर होता है। मालिक के बम्बई से लौटने के पहले ही एक सेठ कुआं और सीढी पर भी अधिकार कर लेता है। अदालत में मुकदमा जाता है- न्यायाधीश सेठ का पक्ष लेकर फैसला उसके हक में दे देता है। तब आकाशवाणी के निर्देश पर मामला पंचायत में जाता है जहां उसे न्याय मिलता है। (ऐ) युवक युवतियों का अन्धे होकर पाश्चात्य सभ्यता की ओर भागना भी इस समय की एक समस्या थी। इस विषय को लेकर रमानाथ मिश्र का 'समाधानम्नामक नाटक प्राप्त होता है। इसमें छात्र छात्राओं द्वारा पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होकर गान्धर्व विवाह कर लेने से जो समस्याएँ उत्पन्न होती हैं उनपर प्रकाश डाला गया है। (ओ) बसुमती परिणय- जगन्नाथ लिखित नाटक। इस रचना का उद्देश्य है राजाओं को सत्यथ पर लाना और राजनीति एवं आर्थिक योजनाओं के हित में यवनों से राष्ट्र को बचाने के लिये हिन्दूजाति में एकता स्थापित करना। (औ) इस काल की एक बहुत बड़ी समस्या थी जमीन्दारों और पूंजीपतियों द्वारा गरीब जनता का उत्पीडन और जनता के त्राण के लिये किसी उदार देशभक्त का तैयार हो जाना। सरकारी तन्त्र का पूंजीपतियों के प्रति पक्षपात । इस समस्त स्थिति का चित्रण करने के लिये ताराचन्द्रवन्द्योपध्याय ने एक बंगाली उपन्यास लिखा था गणदेवता । उस समय इस उपन्यास की पर्याप्त प्रतिष्ठा थी; इस पर पुरस्कार मिला था। अनेक प्रान्तीय भाषायों में इसके अनुवाद हो गये थे। डा. रमा चौधरी ने उक्त उपन्यास के कथानक को लेकर संस्कृत में इसी नाम के नाटक की रचना की। प्राचीनों के आदर्श सामयिक जनमानस को परिस्थिति के सुधार के पथ पर लाने के लिये आवश्यक साहित्य के साथ मुसल्मान और विशेषकर मुगलकाल के कर्मण्य वीरों के आदर्श प्रस्तुत कर समाज में चेतना भरने की चेष्टा की। यद्यपि मुसल्मान भारतीय नागरिक बन गये थे और उनका शासन अंग्रेजों का जैसा विदेशी नहीं रहा था फिर भी वे लोग अपनी संस्कृति, अपना आचरण अपने धार्मिक तीर्थ स्थलों आदि का भारतीय करण नहीं कर सके थे। अतः हिन्दुओं की दृष्टि में वे अब तक विदेशी ही बने रहे थे। जिन हिन्दुओं ने उनकी सत्ता को चुनौती दी वे हिन्दू जनता के आदर्श नेता कहलाये और उनका नाम जनता में