पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/२६

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( सत्रह ) मनोवृत्ति बनानी पड़ती है। उसके निर्वाह में भूलों की भी सम्भावना रहती है और विचारों में भी असामञ्जस्य उद्भूत हो सकता है। अतः इसकी रचना में कवि को विशेष सावधान रहना पड़ता है। जिन रूपकों में परिचित पात्रों का उपादान किया जाता है उनको नाटक की संज्ञा दी जाती है और जिन रूपकों में काल्पनिक पात्र अपनाये जाते हैं उन्हें प्रकरण कहा जाता है। नाटक इसका प्रारम्भ कलात्मक रूप में होता है। प्रारम्भ को प्रस्तावना या आमुख की संज्ञा दी जाती है। इसका उद्देश्य होता है अनियन्त्रित जन समुदाय को नियन्त्रण में लाकर रसास्वादन के लिये तैयार करना और सर्वप्रथम मङ्गलाचरण के रूप में किसी देवता की स्तुति कर जन समाज को आशीर्वाद देना। उसमें पद्य या गीत प्रस्तुत किया जाता है उसमें कुछ तो काव्य सौन्दर्य होता है, कुछ पद्य में अभिनय होने की पात्रता और कुछ संगीत लहरी । इस सबसे जनता आनन्द लाभ करती है अतः इसे नान्दी कहा जाता है। नान्दीपाठ कर जब सूत्रधार चला जाता है तब दूसरा अभिनेता आकर कवि काव्य इत्यादि की सूचना देता है। यह सूचना भी नाट्य का एक कलात्मक खण्ड होती है जिसमें नृत्य होता है ऋतु वर्णन पर गीत होता है, संवाद होता है; किन्तु आंगिक अभिनय नहीं होता। केवल वाचिक अभिनय चलता है। इसीलिये यह भाग भारतीवृत्ति तक सीमित रहता है वैसे इसमें वीथी और प्रहसन के अंगों के समावेश का विधान है। कलात्मक शैली में पात्र प्रवेश करता है और प्रस्तावना समाप्त हो जाती है। नाटक में अत्यन्त प्रसिद्ध कथावस्तु का उपादान किया जाता है जो एक अत्यन्त उच्चकोटि के नायक के विषय में होती है। यह नायक या तो प्रतिष्ठाप्राप्त राजर्षि होता है जैसे अभिज्ञानशाकुन्तल का नायक दुष्यन्त है या कोई दिव्यपात्र होता है, अथवा ऐसा पात्र नायक के पद पर प्रतिष्ठित होने का अधिकारी होता है जो दिव्य होते हुये मानवत्व का अभिमानी हो जैसे भगवान् राम। इन पात्रों की भी प्रसिद्ध कथायें ही नाटक का विषय बन सकती हैं। इन पात्रों के विषय में काल्पनिक कथायें नाटक की कोटि में नहीं आतीं। जो कथायें रामायण महाभारत बृहत्कथा, इतिहास पुराण इत्यादि में अत्यधिक प्रसिद्ध हों वे ही नाटक की कथवस्थ बनती हैं। नायक धीरोदात्त तथा अत्यन्त प्रतापी होना चाहिये। नीतिशास्त्र में जिन गुणों का वर्णन किया गया है नाटक के नायक में उन सभी गुणों की सत्ता दिखलाई जानी चाहिये। वह कीर्ति की इच्छा करने वाला धर्म सेतु का पालक हो और अपने महान गुणों से सभी पर छा जाने की क्षमा रखता हो। देवता भी उसकी सहायता के लिये तत्पर रहें। उसके लोकोत्तर काय से कथानक ओतप्रोत रहे चाहे वे सफलतायें युद्ध भूमि की हों चाहे प्रेम प्रसंग की। कथानक की परिणति सफलताओं में १. (प्रस्तावना के विषय में देखिये- परिशिष्ट