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पृष्ठम्:श्रुतबोधः.djvu/५४

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पुटमेतत् सुपुष्टितम्
५२
परिशिष्टम्
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 भाषा-जिसके चारों चरणों में समान लक्षण हो उसको छन्दः शास्त्र के ज्ञाता समवृत्त कहते हैं ॥ १ ॥ जिसका प्रथम चरण और तीसरा चरण तथा दूसरा और चतुर्थ चरण तुल्य हो उसे अर्ध सम कहते हैं ॥२॥ जिसके चारो चरण आपस में भिन्न २ लक्षण के हो उसे छन्दों के ज्ञाता लोग विषमवृत्त कहते हैं॥३॥

गणलक्षणम् ।


मस्त्रिगुरुस्त्रिलघुश्च नकारो भादिगुरुः पुनरा- दिलघुर्यः जो गुरुमध्यगतो रल मध्यः सोऽन्तगुरुः कथितोऽन्तलघुस्तः||१|| गुरुरेको गकारस्तु लकारो लघुरेककः । क्रमेण चैषां रेखाभिः संस्थानं दृश्यते यथा॥ २॥

 भाषा-मगण में ३ गुरु हैं जैसे ३ऽऽऽ, नगण में ३ लघु जैसे ||| , भगण के अदि में गुरु है जैसे ऽ॥, यगण के आदि में लघु है जैसे Iss, जगण के मध्य में गुरु हैं जैसे ।S।, रगण के मध्य में लघु है जैसे s1 s, सगण के अन्त्य में गुरु हैं जैसे ॥s, तगण के अन्त्य में लघु है जैसे ऽऽ। इस प्रकार छन्दशास्त्र में तीन २ वर्णो के आठ गण हैं, गकार का एक गुरु, वर्ण है जैसेऽ, लकार का एक लघु वर्ण है जैसे । ॥

प्रस्तारज्ञानम्।


 पादे सर्वगुरावाद्याल्लघु न्यस्य गुरोरधः
 यथोपरि तथा शेष भूयः कुर्यादमुंविधिम्