पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम्.pdf/१२

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शिव, सुरेश, सप्तचि, याम्यपति, नैऋति, वरूण, पवन,धनवान् करने को कैकर्य तुम्हार आठों दिश्पत श्रध्दावान् जोडे हाथ सिरो पर निज, हैं तुम्हार करते ध्यान् श्रीमदवेंकटगिरिस्वामिन्! हिवे तव सुप्रभात भगवन् ॥१६॥

देख तुम्हार गमन धिरे गंभीर विंहगराज, मृगराज नागाधिराज, तुरगाधिराज, हिम-सम स्वच्छ-धवल गजराज, निज महिमा अधिकारों की करते याचना, विनत,बन आज श्रीमदवेंकटगिरिस्वामिन्! होवे तव सुप्रभातम् भगवन्॥१७॥

सूर्य,चन्द्र, बुध,वाक्पति,शुक,मंद,स्वर्भानु व केतु,तव प्रमुख न्वों ग्रह सभा की वर शोभा का वो हैं हेतु, तव दासानुदासगण के चरम दास हैं भक्तसागर सेतु! श्रीमदवेंक्टगिरिस्वामिन्!होवे तव सुप्रभात भगवन्॥८॥

तव पद-धृलि-सुशोभित मस्तकवाले भाग्यवान किंकर, स्वर्ग, मोक्ष की परवाह न करनेवाले भवनशंकर! कल्पांतर की शंका से अतिव्याकुल हैं भक्तवशंकर! श्रीमदवेंकटगिरिस्वामिन्! होव्र् तव सुप्रभातम् भगवन्॥१०॥