पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम्.pdf/१०

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घोष- कुटीरों में त्रजभाभिनिर्यो,मटकोँ में दधि धर कर मथन लगी मधुर घुम घुमु के शब्द दिशाऔ में भर कर; लगता है,दिशिया मटके लडते हो,स्फ्ध्र्दा में भर कर! शेषशैलस्वामिन् जागो! होवे तव सुप्रभातम् भगवन्! ॥११॥

पद्मापति के मित्र शतदलों में पेठे मधुपों के झण्ड अपनी देह कांति से देने ईदीवर आभा को दण्ड, भेरीनाद समान धीर गुजार कर रहे हैं उद्दण्ड, शेषशैलस्वामिन् जागो!होवे तव सुप्रभातम्॥१२॥

श्रीमन्! सकल लोक बांधव! वांछित वरदायक भक्तों के, श्री लक्ष्मी का आश्रय! एकमात्र्!करूणा- निधि जगती के! श्री देवी- आश्रय- वक्षःस्थल-शोभित प्रभु, वर धरती के! श्रीमद्वेंकटगिरिस्वामिन्! होवे तव सुप्रभात भगवन्॥१३॥

हर, चतुरानन, सनकादिक शीस्वामिपुष्करिणिका-जल में कर के स्नान, सकल अगों से बन र्निमल द्वाराचल में, वेत्राहत-नत मस्तक हैं भद्रार्थी बाहर हलचल में! श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन्! होवे तव सुप्रभातम् भगवन्!॥१४॥

श्रीगिरि, वेंकटाद्रि, नारायणगिरि, शेषाचल, गऱूडाचल, सात पुनीत नाम हैं प्रमुख वृषाचल एवं वृषभाचल, देव तुम्हारे आवास के, सदा कहते वर नर निश्छल श्रीमदवेंकटगिरिस्वामिन्! होवे तव सुप्रभात भगवन्॥१५॥