पश्यन्ती विविधाकारांस्तुष्यन्ती च मुहुर्मुहुः । आससादारणीतीरं पश्चिमं पादपाकुलम् ।। ५९ ।। देव देवेश भगवान को प्रणामकर वकुलमालिका सर्खीं गुञ्जमणी के समान आकार के लाल घोडे पर सवार होकर अनेकों रिणों, मृगों, पर्वताकार मदमत्त उजले-उ गले दांतों से शोभित विनियों के झुण्ड के साथ मद की धार देने में तटपर हाथियों, सिंहनियों को झुण्ड के पीछे पीछे दौडती हुई श्वेतकेसर युक्त प्रसिद्ध सिंह शार्दूलों, चिडियों, शरभों गवयों, कृष्णसारों, सियारों, सुन्दर खरह, सारसों मयूरों, जंगली दिडालों, हुंडारों, सुग्गीं, यूछरों, सुन्दर मीठी वचन बोलनेवाली पक्षियों आदि अनेकों प्रकार के दृश्यों को देखती हुई बारम्बार सन्तुष्ट हो वृक्षों से भरे हुए आरणी नदी के पश्चिम तीर पर आ पहुँची । (५५-५९) अवतीयरुणादश्वादगस्त्येशसमीपतः । दृष्ट्वागस्त्येश्धरं लिङ्गमगस्त्येन सुपूजितम् । तत्र स्नात्वा च पीत्वा च विशश्राम नदीतटे ।। ६० ।। अपने लाल घोडे से उतरकर अगस्त्येश के निकट ही अगस्त्य ऋषि से पूजित अगस्त्येश्वर लिङ्ग को देखकर, उसते तदी में स्नान तथा जलपान कर नदी के किनारे विश्राम किया । (६०) दिव्योद्यानस्थः पद्मावतीसखी:प्रति वकुलमालिकोक्ति तत्रागता राजगृहाद्योषितो देवसन्निधौ । सखीः पद्मालयास्ताः दृष्ट्वा वकुलमालिका । गत्वा समीपे तासां सा किंवदन्तीं स्म पृच्छति ।। ६१ दिव्य उद्यानस्थ पद्मावती की सखी से वकुलमालिका का कथन राजगृह से भगवान के समीप आयी हुई स्त्रियों को पद्मालया की सखी वघुकुलमालिका ने देखकर उनके निकट जाकर उनसे हाल चाल पूछा । (६१)