पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/६

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अनेक तन्त्रग्रन्थ आदि पाये जाते हैं, यहां तक कि प्रत्येक सम्प्रदाय के उपयोगी उपनिषद् भी प्राप्त होते हैं । उसी शैली के अनुसार प्रत्येक सम्प्रदाय के उपासक के लिये अपने अपने सम्प्रदाय के पंचाङ्ग ग्रन्थ हैं। अपने अपने सम्प्रदाय के पंचाङ्ग ग्रन्थों में से अपने अपने सम्प्रदाय का गीताग्रन्थ सबसे प्रधान माना गया है। विष्णुसम्प्रदाय की श्रीविष्णुगीता, सूर्यसम्प्रदाय की श्रीसूर्यगीता, देवीसम्प्रदाय की श्रीशक्तिगीता, गणपति-सम्प्रदाय की श्रीधीशगीता और शिवसम्प्रदाय की श्रीशम्भुगीता-ये पाचों ग्रन्थ अति अपूर्व उपनिषदरूपी हैं। इन पांचों ग्रन्थरत्नों का प्रकाशन अब तक ठीक ठीक नहीं था। यदिच देवीगीता, शिवगीता और गणेशगीता नामसे कुछ अन्य प्रकाशित भी हुए हैं तो वे असम्पूर्ण दशा में प्रकाशित हुए हैं। श्रीभारतधर्ममहामण्डल के शास्त्रप्रकाश विभाग तथा अनुसन्धान विभाग द्वारा ये पांचों ग्रन्थरत्न अपने सम्पूर्ण आकार में प्राप्त हुए हैं। उन्हीं पांचों में से यह तीसरी गीता अब प्रकाशित हो रही है। और गीताएँ इसी प्रकार से क्रमशःप्रकाशित होंगी। ये पांचों गीताएँ वेद-विज्ञान, सनातन धर्म के अपूर्व रहस्य, गभीर अध्यात्मतत्त्व और पूज्यपाद महर्षियों के ज्ञानगरिमा के सिद्धान्तों से परिपूर्ण है, इन पांचों के पाठ करने से पाठक बहुत कुछ ज्ञान लाभ कर सकते हैं। निर्गुण ब्रह्म तथा उसकी उपासना का रहस्य, सगुण उपासना का महत्व और विज्ञान, वेद के कर्मकाण्ड, उपासनाकाण्ड और ज्ञानकाण्ड का मर्म, सनातनधर्म के सब गभीर सिद्धान्तों का निर्णय, अध्यात्मतत्व, अधिदैव तत्त्व, अघिभूत तत्त्व यहां तक कि वेद का सार सब कुछ इन पञ्चगीताओं में प्राप्त होता है। ज्ञानकाण्ड का विघ्न जिस प्रकार अहंकार है, उपासनाकाण्ड का विघ्न जिस प्रकार साम्प्रदायिक विरोध है, उसी प्रकार कर्मकांड का विघ्न दम्भ है । कर्मकांडी इनको पाठ करने से अपने दम्भको भूलकर भक्त बन जाएँगे, उपातकगण अपने क्षुद्राशय और साम्प्रदायिक विरोध को भूलकर उदार और पराभक्ति के अधिकारी वन सकेंगे और तत्वज्ञानी के लिये तो ये पांचों गन्थ उपनिषदों को साररूप हैं। गृहस्थों के लिये ये पञ्चगीताएँ परममङ्गलकर और सन्न्यासियों के लिये अध्यात्मपथप्रदर्शक हैं। श्रीभारतधर्ममहामडल के शास्त्र प्रकाश विभाग के अन्य ग्रन्थों के अनुसार इस गन्धरत्नकास्वत्वाधिकार दीन-दरिद्गों के भरण-पोषणार्थ श्रीविश्वनाथअन्नपूर्णादानमडार को दिया गया है । इस गन्थ के इस संस्करण के छापने का व्यय खैरीगढ़राज्येश्वरी श्रीमती भारतधर्मलक्ष्मी महारानी सुरथकुमारी देवी के. एच. ओ. बी.ई.महोदया ने प्रदान किया है। श्रीविष्णुभगवान उनको नीरोग और दीर्घायु करें । विज्ञापनमिति । श्रीकाशीधाम, गुरुपूर्णिमा विवेकानन्द । सम्बत् १९७६ विक्रमीय