पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/२६

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श्रीविष्णुगीता।



शङ्खचक्रगदापद्मसुशोभितचतुर्भुजम् ।
भक्तेभ्यस्तु चतुर्वर्ग प्रेम्णा दातुमिवाऽऽगतम् ॥ ३०॥
दिव्यश्यामाकृतिं कान्तं कौस्तुभेन विभूषितम् ।
अनन्तरूपेऽनन्ताख्ये पर्यङ्के शायिनं विभुम् ॥ ३१ ॥
कोटिसूर्यग्रहज्योतिःसेवितोज्ज्वलविग्रहम् ।
वनमालालसद्गात्रं विभ्रत्केयूरकुण्डलम् ॥ ३२॥
नखात्मकनिरङ्केन्दुकौमुदीद्योतितं श्रिया।
सेवितं पुण्डरीकाक्षं स्मितशोभिमुखाम्बुजम् ॥ ३३ ॥
स्थानं निःशेषशोभानां सौन्दर्यनिकराकरम् ।
भगवन्तं रमानाथं प्रसन्नं पुण्यदर्शनम् ॥ ३४ ॥
दिव्यदृष्ट्याऽथ ते देवा दृष्ट्वा विस्मितचेतसः।
अपूर्वदर्शनं देवमाविभूतं प्रतुष्टुवुः ॥ ३५ ॥



हर हैं॥२9॥ चारों हाथ जिनके शङ्ख चक्र गदा और पद्मसे सुशोमित हैं मानों भक्तोको प्रेमपूर्वक चतुर्वर्ग ( धर्म अर्थ काम मोक्ष ) देनेको आये हैं ॥३०॥ दिव्य श्याम जिनका वर्ण है, अनन्तरूपधारी अनन्त जिनका पर्याङ्क है, कौस्तुभमणिसे विभूषित हैं ॥३१॥कोटि सूर्य-ग्रहोंकी ज्योतिसे सेवित प्रकाशमान शरीरवाले है,केयूर और कुण्डलको धारण करनेवाले हैं, वनमालासे विभूषित उनके नख मानो निष्कलङ्क चन्द्र हैं उनकी कौमुदीसे वे शोभा यमान है लक्ष्मीके द्वारा सुसेवित हैं, कमलनेत्र है, मन्दहास्यसेमुखकमल जिनका शोभायमान है ॥ ३३ ॥ अखिल शोभाके स्थान हैं.सब प्रकार के सौन्दर्य के आकर भगवान् रमानाथ प्रसन्न औरपुण्य दर्शन हैं ॥ ३४ ॥ अनन्तर देवगण अपूर्व जिनका दर्शन है ऐसे आविर्भूत देवादिदेवके दिव्य दृष्टिके द्वारा दर्शन करके विस्मितचित्त होकर स्तुति करनेलगे ॥ ३५॥ नेत्र हैं, मन्दहास्यसे मुखकमल ॥ अखिल शोभाके स्थान हैं, सब रमानाथ प्रसन्न और पुण्य