पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/१७३

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श्रीविश्वानाथो जयति । धर्मप्रचारका सुलभ साधन। समाजकी भलाई.! मातृभाषाकी उन्नति !: देशसेवाका विराट् आयोजन !!! 1 इस समय देशका उपकार किन उपायोंसे हो सकता है ? संसार- के इस छोरसे उस छोरतक चाहे किसी चिन्ताशील पुरुषसे यह प्रश्न कीजिये, उत्तर यही मिलेगा कि धर्मभावके प्रचारसे ; क्योंकि धर्मने ही संसारको धारण कर रक्खा है । भारतवर्ष किसी समय संसारका गुरु था, आज वह अधः पतित और दीन हीन दशामें क्यों पच रहा है ? इसका भी उत्तर यही है कि वह धर्मभावको खो बैठा है । यदि हम भारतसे ही पूछे कि तू अपनी उन्नतिके लिये हम- से क्या चाहता है ? तो वह यही उत्तर देगा कि मेरे प्यारे पुत्रो! धर्मभाव की वृद्धि करो । संसारमें उत्पन्न होकर जो व्यक्ति कुछ भी सत्कार्य करनेके लिये उद्यत हुए हैं, उन्हें इस बातका पूर्ण अनुभव होगा कि ऐसे कार्यों में कैसे विघ्न और कैसी बाधाएँ उपस्थित हुआ करती हैं । यद्यपि धीर पुरुष उनकी पर्वाह नहीं करते और यथासम्भव उनसे लाभ ही उठाते हैं, तथापि इसमें सन्देह नहीं कि उनके कार्योंमें उन विघ्न बाधाओंसे कुछ रुकावट अवश्य ही हो जाती है । श्रीभारतधर्म महामण्डलके धर्मकार्य में इस प्रकार अनेक बाधाएँ होनेपर भी अब उसे जन- साधारणका हित साधन करनेका सर्वशक्तिमान भगवान्ने सुअव- सर प्रदान कर दिया है । भारत अधार्मिक नहीं है । हिन्दुजाति धर्मप्राण जाति है, उसके रोमरोम में धर्मसंस्कार ओतप्रोत हैं। केवल वह अपने रूपको-धर्मभावको-भूल रही है । उसे अपने स्वरूपको पहिचान करा देना-धर्मभावको स्थिर रखना-ही श्रीमा- रतधर्ममहामण्डलका एक पवित्र और प्रधान उद्देश्य है । यह कार्य १८ वर्षों से महामण्डल कर रहा है और ज्यों ज्यो उसको अधिक न्य