पुटमेतत् सुपुष्टितम्
२८
सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
५५ | यमुनातरणम् | .... .... ५०९ |
५६ | चित्रकूटनिवासः | .... .... ५१५ |
श्लोकसङ्ख्या | अवान्तरविषयाः | |
५५ | ||
ततः प्रातः प्रतस्थुस्ते चित्रकूटगिरिं प्रति ॥ | ....५०९ | |
१२८ | संप्राप्य यमुनां ते तु प्लवेन प्रातरन्नदीम् । | ....५११ |
तद्रात्रिं यमुनातीरवने ते न्यवसंस्त्रयः ॥ | .... ५१३ | |
५६ | ||
१२९ | प्रस्थिताः प्रातरुत्थाय चित्रकूटगिरिं ययुः | .... ५१५ |
चित्रकूटेऽकरोद्रम्यां पर्णशालां तु लक्ष्मणः ॥ | .... ५१७ | |
१३० | तत्र ते न्यवसन् हृष्टाः क्रीडन्तः सुसुखं गिरौ । | .... ५१९ |