पृष्ठम्:श्रीमद्बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् (सुबोधिनीटीकासहितम्).pdf/४९५

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पलादिवर्णनाध्याय: ५ वक्रगते दलम् ॥ २६ ॥ पादं विकलभुतेः स्याइलमेव स मागमे ॥ पादं मंदगतस्तस्य दलं मन्दतरस्य च ॥ २७॥ शीघ्रमुक्तेस्तु पादोनं दलं शीघ्रतरस्य तु ॥ मध्यमम्फुटवि टीका। " वक्रगतिर्यस्य तस्य ग्रहस्य वीर्य बलं षष्टिः ६० रुपवले अनृवकराते ऋ जुगतेरित्यर्थः दलं त्रिंशत् ३० बलं विकलभुतेः विकला रविसाहचर्यात्रि- बेला भुक्तिर्यस्य तस्य रविसहितस्येत्यर्थः पादं बलं १५ तथा समागम समः आगमो गतिर्यस्य तस्य चंद्रसहितस्येत्यर्थः दलमेव ३० बलं मंदगते मंदा मध्यमा निरल्या गतिर्यस्य तस्य पादं १५ बलं मंदसरस्य पूर्वतोप अल्पन रगतेः तस्य पादस्य दलं ७१३० बले शीघ्रभुक्तेः शीघ्रा मध्यमाधिका सु- तिर्यस्य तस्य पाढ़ोनं ४५ बलं शीघ्रतरस्य पूर्वतः अतिशीघ्रगस्य ग्रहस्य दलं बलं एवं गतिवलं ज्ञेयमिति ॥ २६ ॥ २७ ॥ अथ क्रमप्राप्त बेटा- भाषा । समान होते तो वो दोनों यहाँका युद्ध जानना, इसमें जित पराजितादिकका बल लानेका विधि बतलाते हैं. युद्ध करने वाले दोनों यहाँका पहले कया हुवा है उस दोन अंतर करके 'बलमें हीन है वो यह निर्जित (हारा) जानना. उसके बलैक्य में अंतर के अंक हीन करना वो दक्षिण दिशाका निर्जित्वल जा 14:4 e FOR C की अजादा है वो जीत हुवा काना तो उत्तर दिशाका बल आया है जो स्वाभा ग्रह वक्री है उसका ६० साठ बल लेना, ३० बल लेना. जो सूर्यके साथ है उसका । अब हजो सरल काबल ★:३५ का रहा बल अब मध्यम 1 . है उसका बल ३० लेना. जो मंदगति है। संगति होवे उसका बल ७३ लेना, शी शीघ्रगति ग्रहका ३० का बल लेना ॥ २६ जिन ग्रहोंका चेष्टायल करना है सो ऐसा कि और स्पष्ट करना पीछे मध्यम और स्पष्टका अंत अर्ध भाग करके मध्यम अह स्पष्ट ग्रहसे अधिक हो