पृष्ठम्:श्रीमद्बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् (सुबोधिनीटीकासहितम्).pdf/४८०

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बृहत्पाराशरहोरोसरमाणे- दृष्टयः || ३ || शराधिके बिना राशि भागादिनाध्य गृह- यः ॥ वेदाधिके त्यजेद्भुताङ्गागादृष्टिबिभाविके ॥ ४॥ कि शोभ्यर्णवतो द्वाभ्यांलब्धत्रिंशद्युतं भवेत् कराधिके विना- • राशिभागास्तिथि युतास्तथा ॥ ५ ॥ रूपाधिके बिमा राझिं टीका । युंता: १७१३|४२ इयं दृष्टिरिति । अथ रूपाधिकावशेषराश्य कोदाहरणम् । द्रष्टा चंद्र ८|२५|३७/१६ दृश्यः सूर्यः १०|४|१४|२२ अस्मादीनः शेष १९८१३७१६ अत्रत्यराशि त्यक्त्वा शेषभागाः ८८३७/६ द्वाभ्यां मक्ताः फ ४१८३३ इयं दृष्टिरित ॥ ३ ॥ ४ ॥ ५ ॥ एवं सर्वग्रहसाधारणदृष्टयानय- भाषा | करनेकी रीति बताते हैं, जिस ग्रह के ऊपर जिस ग्रहका या भावकी दृष्टि है उस मेंसे देखनेवालेकू कमी करके शेष जो छः राशिसे जादा होने तो दस राशिमें गिरायके उसके अवशेष राशिके अंश करके उसका दोसे भाग लेके गरे फल व्यायामही दृष्टिबल होता है. और दृश्य द्रष्टाका शोषन करके ओ शेष अंक आद वे पांच से जादा होने सो राइयंक छोड़के अंशकूं द्विगुणित करना ओही दृष्टियां होती हैं. शोधन करके शेष राश्यादिक अंक चारसे जादा होवे तो पांच में शोधन करके जो अंश आवे ओही दृष्टि होती है. और शोधन करके शेष राश्यादिक अंक तीनसे जादा होवे तो चार शोधन करके दीसे भाग लेके जो ल क्यांश अंक है उसमें तीस मिळाना. वह इष्टि होती है. ऐसा शेषांक जी दोसे जादा होवे सो वे राशिकू छोडके अंश जो है उसमें फै घरा मिळाये ओही दृष्टि होती है. शेषांक एकसे जादा होवे तो राशिक अंशको दोसे माग देना ओलब्ध माने ओही दृष्टि जानना इसका उदाहरण टीमें दिखाया है. इसके चस्पष्ट यहाँ दिखाया है ॥ १०.४५ 2:1944-21 अथ ग्रहदशा . सु.वि. सं. ब. गु... यो FAUHILAH श. 48 PIRIN Joonioun