पृष्ठम्:श्रीपाञ्चरात्ररक्षा.djvu/२९५

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२३० प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिका सुबद्धमपि शब्देन १४९ इ स 12-58 स्तोत्राणि चाथ मन्त्राणि ९६ पार सं सुरूपा प्रतिमा विष्णो १६३ वि धर्म 2-15 (शौ) 103-16

      सू            स्त्रीमङ्गाद्युपघातेषु १०५ पार स 2-65

सुतस्य च विशेषेण ४६ पा सं (च)1-7

       से

सेतिहासपुराणैस्तु ७ पौ स 38-305

     सो

सोपानत्कस्तु यो मत्र्य १४६ व पु सोऽपि यायात् परं स्थान १७६, सा स 6-222 सोऽपि स्वकुलजान् सर्वान् १५ पा स (प)21-77 सोमसूर्यान्तरस्थ व १२६ ज 16-322 सोऽह भगवो मन्त्रवित् २५ छा 7-1-3

            स्थ

स्थण्डिले पद्मकं कृत्वा २४ म भा आश्व 104-84 स्थाने तु कर्मबिम्बाना १७ पार स (प्र) स्थापित मनुजेन्द्रस्तु ३७ पार स 10-319 स्थापित मनुजेंर्दैव ३६ पार स 10-317 स्थापित मा ततस्तस्मिन् २४ म भा (आश्व) 104-86 स्थापिते पञ्चरात्रेण २७ पा सं 19-128 स्थित्वाग्रे देवदेवस्य १५४ व 470 स्थित्वान्तर्हदये १५३ व 460

         सौ

सौम्यसिहादिभूयिष्ठ ११ पा स (च) 19-120 सौम्येन वैदिकेनैव २३ वै सौवर्णाच प्रसूनात्तु ५० म भा (आश्व) 104-75

      स्न

स्नात्वा नित्य शुचि कुयत् ६५ म स्नात्वाभ्यर्च्य जगन्नाथ ८८. १२५ सा स 6-216 स्नानमूला क्रिया सर्वा १०५ ज स 9-70 स्नानीयान्यपि वस्त्राणि १२९ पा स (च) 13-32 " स्त स्तुतिजपनिजबिम्बालोकन १२४ प सू स्तुत्वा च बहुभि स्तोत्रै १५४ व 464

       स्प

स्पृष्ट व बिम्बे तन्त्राणा १६ पा स (च) 17-45 स्पृष्टा तु मृतक चैव १४४ व पु स्पृष्टा वै दीपकं यस्तु १४५. व पु