प्रमाणवचनादीनां वर्णानुक्रमणिका
तच्छास्त्रमन्तरेणैव १९, ३४, का ततो मुक्तो महाभागे ११९ व पु 45 तत आधारशक्तयादीन् ११३, ना मु ततोऽष्टाङ्गेन योगेन ४८ ज स 22-71 तत कुम्भं समादाय १२३, व 81 तत्तत्कालोद्भवाना च १२३ तत पश्धिमसन्ध्याया १६४ पा स्म 13-73 तत्तन्त्रसिद्धान्ताह्वानं ११ पा स (च)19-120
तत पुष्पफलादीना ४८, ७१, १२९ ज स 22-69 तत्तृतीय हि यागाङ्ग ४९ ज सं 22-78 तत्तीर्थमधिकं विद्धि १०४ इ स 25-21 तत पूर्व समुत्थाय ९९ तत् पारमेश्वर वाक्य २९ सा सं 22-51 तत प्रक्षाल्य चरणौ १२४ व 83 तत्पूर्वापररात्रेषु ५७, १५ ततश्च प्रत्यहं ५७, १६० वै ग तत्प्रभावाच्च तेनैव ८५ सा स 6-210 ततश्चानुभूयमान १६१ वै ग तत्प्राप्तये च तत्पादाम्बुज १५९ वै ग तत श्रमजयं कुर्यात् ८७ सा स 6-215 तत्र तामसमार्गेण ४० पार स 10-330 तत सन्ध्यामुपासीत ६७ व्या स्मृ 2 तत्र दिव्य परित्यज्य ३७ पार स 10-322 तत समाचरद्यत्नात् १९, पार स 19-583
तत्र नाचमनं कुर्यात् १२२ व पु 45
तत सिद्धान्तसाकर्य १९ पार स 19-584 तत्र राजसमार्गेण ४० पार स 10-329
तत्र वै त्रिविध वाक्य २९ सा स 22-49
ततस्तदर्हविन्यास १५६ व 484 ततस्तस्मै नमस्कृत्वा १०९ पि तत्र सगवादय काला ५१प्र र ततस्तीर्थ समाश्रित्य १०३ वं 49 तत्र सगवे वैकुण्ठस्य ५१ प्र र ततस्ते ऽपि महाभागे ११८ व पु 45 तत्रापि राजसेनैव ४० पार स10 -327
ततस्त्वभिमतेनैव ८३ तत्रापि दिव्यमार्गाचेत् ३७, ४२ पार सं 10-320 तत स्रान प्रकुर्वीत ७० द स्मृ 2-7 तत स्वकर्मभोक्तार ११२ वं 78 तत्रापि सात्त्विकेनैव ४० पार स10-328 तत स्वस्मै प्रपन्नाय १५४ वं 471 ततो जाग्रत्पदस्थं च ८४ सा स 6-206 तत्राभिगमनं नाम ५४ ना मु ततो ऽपि मनुजो मुक्त १२० व पु 45 तत्रार्ध्यादिभिरभ्यर्च्य १५२ ना मु ततो भगवता स्वयमेव १६१ वै ग तत्सबंन्धानुसन्धानं ५९ शा स्मृ 4-219 5-18 ततो भूधरमन्त्रेण ९७ वं 47 ततो मध्याह्नसमये ६३ व्या स्मृ 2-9 तत्संश्लेषवियोगैक ८०. गी स. 29