पृष्ठम्:शिवस्तोत्रावली (उत्पलदेवस्य).djvu/२८२

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२६८ ( क ) शब्दार्थ - पान- = • पीने ( अर्थात् संसार की स्थिति करने ), अशन- = खाने (अर्थात् संहार करने ) प्रसाधन- = तथा सजाने (अर्थात् सृष्टि करने ) से सम्भुक्त- समस्त विश्वया = सारे जगत का पालन और भोग करने वाली ( एवं =और ) प्रलय = प्रलय के उत्सव = उत्सव से श्रीशिवस्तोत्रावली शिवया = ( परा - पार्वती से सरभसया = विकसित बनी हुई - दृढम् = ज़ोर से - उपगूढं = आलिंगित शिवं = चिद्भैरवनाथ को - ( ख ) भावार्थ - पान- = ( रक्त आदि के ) पीने, अशन- = ( मांस आदि के ) खाने प्रसाधन = तथा ( हड्डियों आदि) सजाने ( भूषण के काम में लाने ) से - सम्भुक्त- समस्त विश्वया ( छत्तीस तत्त्वों से युक्त ) सारे जगत को भोगने तथा अपने में लय करने वाली प्रलय-उत्सव = प्रलय के उत्सव पर ( संहारकर्त्री की पदवी पर बैठकर सारे जगत को अपने में करने की क्रीडा में ) सरभसया = उत्सुकता से लगी हुई शक्ति रूपिणी ) शिवया = ( पराशक्ति रूपिणी) - पार्वती से ( एवं = और ) - - दृढम् = ज़ोर से उपगूढं = आलिंगित शिवं = शिव को वन्दे = मैं प्रणाम करता हूँ ॥ २९ ॥ वन्दे = मैं प्रणाम करता हूँ ( अर्थात् - उसमें समावेश करता हूँ ) ॥ २९ ॥ शिवया दृढमुपगूढं-परशक्त्या - दृढमालिष्टं शिवं - चिद्भैरवं, वन्दे - नौमि समाविशामीति यावत् । कीदृश्या ? पानाशनप्रसाधन- सम्भुक्तसमस्त विश्वया - पानेन - रक्षणेन स्थित्या, अशनेन-केवलीक - १ ग० पु० स्तौमि - इति पाठः । २ ख० पु० कंवलीकारात्मना – इति पाठः ।