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सर्गः
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श्लोकः
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आ
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आकर्णयंस्त |
IX |
52
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आकर्णयस्तनित |
XI |
7
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आकणयन् जय |
IV |
18
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आकर्णयन्निति |
IV |
8
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आकण्यै देववचनं |
VIII |
140
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आकण्ये वाचमिति |
IV |
60
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आगच्छतामपि यतां |
IV |
77
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आगच्छदात्माभिमुखम् |
VIII |
80
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आगत्य तत्र |
IX |
2
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आगत्य दूरवणिजः |
XI |
34
|
आगत्य देशिकपदः |
IV |
88
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आचर्यवाक्येन |
VII |
57
|
आजग्मतुस्सुवसनौ |
VI |
29
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आजन्मनस्स खलु |
VII |
41
|
आजन्मनो गणयत |
I |
8
|
आत्मत्वमन्यतमगं |
VII |
5
|
आत्मात्मजाया |
IX |
24
|
आत्मानमन्यच |
II |
21
|
आदाय मूर्धमणि |
IV |
56
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आदिश्येत्थं |
IV |
70
|
आदिश्यैवं |
IX |
29
|
आद्यन्तनाशे |
XII |
43
|
आधाय वह्निमथ |
VI |
59
|
आनन्दयन्न्म्रत |
X |
105
|
आनम्रपक्वफल |
XI |
61
|
आनर्च पुष्पाक्षत |
VI |
7
|
|
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सर्गः
|
श्लोकः
|
आनायि चैत्रेण |
VI |
81
|
आनेष्ट दूरगनदीं |
IV |
59
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आपगास्समभवन् |
X |
66
|
आपादकामस्तक |
X |
69
|
आपूर्णशालिनि |
XI |
32
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आभाषिंते ययनिकां |
XII |
60
|
आभासयन्नान्तर |
IV |
75
|
आमूलकाग्रफलितै |
XI |
76
|
आयन्नसौ |
VIII |
98
|
आयन्मार्गे |
VI |
5
|
आयाति भर्तरि |
VI |
74
|
आरभ्यमाणाः पुरुषैः |
XI |
67
|
आराधितं दैवतम् |
VII |
25
|
आराधितो |
II |
7
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आलिकिंताः |
XI |
62
|
आलोकय वल्लभ |
IV |
33
|
आलोच्य किञ्चित् |
XII |
64
|
आलोच्य सा |
IV |
47
|
आवश्यकं परिसमाप्य |
VI |
97
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आविर्बमूव |
XI |
1
|
आससाद शनकैः |
VII |
99
|
आसाद्य तीर्थम् |
IX |
27
|
आसाद्य यं |
XII |
8
|
आखाद्यन्मधुर |
X |
45
|
|
इ
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इति निगद्य गते |
XI |
104
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इति निगद्य वचः |
XI |
138
|
इतेि निशम्य वच |
III |
109
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