|
सर्गः
|
श्लोकः
|
अ
|
अन्तमृतो वा |
VII |
109
|
अन्तःस्थिं |
VIII |
63
|
अन्तस्सन्धौ |
VII |
114
|
अन्तस्सालस्य |
VIII |
139
|
अन्यः स्वहस्तगत |
VI |
46
|
अन्या तरोः |
X |
56
|
अन्योन्यमुत्तरम् |
VI |
101
|
अन्योन्यसञ्जय० |
VI |
99
|
अन्योन्यसन्दर्शित० |
X |
127
|
अन्य्न्यसेचन् |
X |
83
|
अपगणस्सरता |
III |
80
|
अपाचिीषुरगात् |
X |
51
|
अपनिीषुरयं |
X |
84
|
अपसरत सुदूंर |
VII |
111
|
अपससार तमः |
X |
104
|
अपि जलेन |
III |
24
|
अपि भवद्विषये |
XI |
85
|
अपि मखः क्रियते |
XI |
89
|
अपि मनो भवतां |
XI |
84
|
अपि शिशों विदित |
III |
112
|
अभिनिमज्य सरः |
III |
11
|
अभिपतद्रमर० |
X |
78
|
अभिययुर्ललना |
X |
77
|
अभिषिषेचुरथ |
XII |
75
|
अभिसरद् वृषमेण |
III |
79
|
अंभ्रलिहानि |
XI |
36
|
अमृत देव नरः |
VII |
120
|
अम्म्स्तदीयं |
VIII |
24
|
|
|
सर्गः
|
श्लोकः
|
अ
|
अम्भांसि कुम्भजननो |
XI |
27
|
अम्भोधितीरनगरे |
XI |
28
|
अम्भोभिरुज्झितमलैः |
XI |
23
|
अर्थावबोधनफलो |
I |
10
|
अवसरमभिवीक्ष्य |
X |
115
|
अवाप्य सन्दर्शन० |
VI |
18
|
अविदितं तव |
III |
53
|
अवेदिषं वेद |
V |
24
|
अशिशिराम्बुभिः |
X |
96
|
अशूशुषन्नूक्षण |
XI |
70
|
अश्रौष्म सन्यासकृतम् |
VIII |
43
|
अश्वा गजाः |
XI |
30
|
अष्टाङ्गयोग |
X |
31
|
अष्टाविमास्सकल० |
VIII |
133
|
अष्टौ सहस्राणि |
V |
14
|
असंशय निवृति |
VII |
105
|
असना व्यसनाय |
X |
18
|
असारसंसार |
V |
16
|
असितकण्ठ नमोऽस्तु |
III |
67
|
अस्ति प्रयोजनमिह |
IV |
78
|
अस्पन्दतास्य |
VIII |
73
|
अस्माकमद्य पवितं |
VI |
51
|
अस्माचतुर्दश |
VI |
44
|
अस्यापि हन्त |
X |
114
|
अस्यामजाता |
I |
38
|
अहं गृही नात्र |
VII |
61
|
अहं बहूनाम् |
VII |
47
|
अह्यम्ब रात्रि |
IV |
52
|
|